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________________ १५४ आप्तवाणी-८ काम करना पड़ता है, तब उसका 'खुद' का उस तरफ़ का उपयोग है और 'खुद' का काम करना पड़े, तब 'इस' तरफ़ उपयोग रखता है। इस प्रकार दो उपयोग रखता है। उपयोग तो एक ही होता है, लेकिन जिस समय कुछ टाइम मिला, वैसे संयोग मिल गए तो इस तरफ़ उपयोग रखता है और ये संयोग मिल जाते हैं तो इस तरफ़ उपयोग रखता है। अंतरात्मा अर्थात् 'इन्टरिम गवर्नमेन्ट' की स्टेज है। फिर धीरे-धीरे बाहर का, संसार का निकाल करता है, वैसे-वैसे अंतरात्मा में से धीरे-धीरे 'फुल गवर्नमेन्ट' बनती जाती है। अब आपको और क्या पूछना है? प्रश्नकर्ता : मैं यही कन्फर्म करना चाहता हूँ कि जीवात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा, ये एक ही वस्तु के तीन अलग-अलग नाम हैं? दादाश्री : एक ही वस्तु के तीन विशेषण हैं। घर पर बेटे का बाप कहलाता है और वहाँ अपनी दुकान पर गया तो सेठ कहलाता है और कोर्ट में वकील कहलाता है। 'अरे, क्यों यही के यही पिता, यही के यही सेठ और यही के यही वकील, ऐसा क्यों बोल रहे हो?' तब कहता है, 'जैसे-जैसे काम हैं, उसके अनुसार उनका विशेषण है।' जैसे संयोग उसे मिलते हैं, दुकान मिली तो सेठ कहलाता है, कोर्ट में वकालत करने गया तो वकील कहलाया, यह सब भी उसी प्रकार का है। यानी लोग जीवात्मा कहते हैं और आत्मा कहते हैं, ये सब एक ही चीज़ है। जैसे आपको सभी लोग प्रोफेसर कहते हैं, लेकिन घर में बच्चे? प्रश्नकर्ता : पापा कहते हैं। दादाश्री : हाँ। और कॉलेज में प्रोफेसर। उसी तरह कौन-कौन से कार्य के अधीन हो आप, उसके अधीन ही ये सभी विशेषण दिए गए हैं। जिस तरह 'आप' वही के वही हैं, लेकिन एक जगह पर पापा हो और एक जगह पर प्रोफेसर हो, उसी तरह इसमें भी काम के अनुसार विशेषण है। जब तक ऐसा माना है कि पुद्गल में ही, विनाशी चीज़ों में ही सुख
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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