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________________ या अंत अथवा बढ़ना-घटना कैसा? उसका आवागमन कैसा? गोलाकार की शुरूआत कौन-सी? जिसकी आदि ही नहीं उसे बनाएँगे कैसे? बाकी बननेवाले और बनानेवाले दोनों विनाशी ही होते हैं। हर एक वस्तु, जगत् स्वयं, स्वभाव से ही आगे बढ़ते रहने के कारण समसरण मार्ग में से जितने जीव सिद्धक्षेत्र में जाते हैं, उतने ही जीव अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके कारण व्यवहार राशि की रचना (व्यवहार राशि में आनेवाले आत्माओं की कुल संख्या) वैसी की वैसी रहती है। यदि इनमें से एक भी कम हो जाए तो कुदरत का प्लानिंग बिगड़ जाएगा और आज चंद्र तो कल सूर्य गैरहाज़िर हो जाएँगे! जनसंख्या के बढ़ने या घटने की हद कुदरत के हानि-वृद्धि के निश्चित नियम से बाहर जा ही नहीं सकता! ___ आत्मा स्वभाव से ही मोक्षगामी है, यदि बीच में दखल नहीं हो तो! शुभ विचारों से हल्के परमाणुओं का ग्रहण होता है जिससे आत्मा का ऊर्ध्वगमन होता है और भारी-भरकम परमाणुओं के ग्रहण होने से वनस्पतिकाय तक पहुँचकर-जहाँ नारियल, आम या रायण के पेड़ में प्रवेश करके खुद के किए हुए प्रपंचों के दण्डस्वरूप लोगों को आजीवन मीठेमधुर फल देकर, ऋणमुक्त, कर्ममुक्त बनता है! और अंत में ज्ञानीपुरुष के पास शुद्धात्मा जानने के बाद स्वभाव में रहकर और पुद्गल के प्रसंगों का पूर्णरूप से निकाल (निपटारा) होने पर, मोक्ष में जा सकता है। इन वैज्ञानिक नियमों में किसीकी कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं है। जगत् में भासित भिन्नत्व, भाँति के कारण, अवस्थाओं के कारण है, बुद्धि की डिग्री की दृष्टि से देखने के कारण है! मूल तत्व होकर सेन्टर में देखने पर अभिन्नता है, वही परमात्म दर्शन है!!! ज्ञानी 'जैसा है वैसा' देखकर बोलते हैं। जो 'है' उसे 'नहीं' नहीं कहते और जो 'नहीं' है उसे 'है' नहीं कहते। वीतरागों ने सनातन तत्वों १८
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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