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________________ १४२ आप्तवाणी-८ .....ऐसा भान होने की ही ज़रूरत.... प्रश्नकर्ता : यानी आत्मा से ही परमात्मा बनता है, ऐसा? दादाश्री : आत्मा खुद ही परमात्मा है। सिर्फ उसे भान हो जाना चाहिए। आपको यदि भान हो जाए, एक मिनट के लिए भी भान हो जाए कि 'मैं परमात्मा हूँ' तब से ही आप परमात्मा बनने लगोगे! प्रश्नकर्ता : तो 'मैं परमात्मा हूँ' ऐसा हम बोल सकते हैं? दादाश्री : आप ऐसा कहो कि 'मैं परमात्मा हूँ' तो लोग आपको डाँटेंगे, गालियाँ देंगे, मज़ाक उड़ाएँगे। जब कोई आपका मज़ाक नहीं उड़ाए, आपको गालियाँ नहीं दे, तब 'मैं परमात्मा हूँ', ऐसा कहना। हम बनावटी आम लेकर जाएँ तो रस निकलेगा क्या? नहीं निकलेगा न! ऐसा आपको समझ में आता हैं न? यानी कि आप परमात्मा ही हो, लेकिन आप परमात्मा बन नहीं चुके हो। उस स्वरूप का आपको भान नहीं हुआ है। अभी आपको 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा भान है। 'मैं परमात्मा हूँ' ऐसा भान हो जाना चाहिए। तो अब क्या 'मैं परमात्मा हूँ' ऐसा आपसे ऐसा बोला जा सकता है? प्रश्नकर्ता : नहीं कह सकते। दादाश्री : हाँ, नहीं तो लोग मज़ाक उड़ाएँगे। ये लोग तो, अगर यथार्थ बात हो, सही हो तो उसका भी मज़ाक करें, ऐसे हैं । यह तो दुनिया है। इसका तो अंत नहीं है। __ अब 'आप आत्मा हो' इसका विश्वास हो गया है? 'आप आत्मा हो' का आपको क्या अनुभव हुआ? किस तरह से भरोसा हुआ? प्रश्नकर्ता : इतना भरोसा तो है कि अंदर आत्मा है। दादाश्री : लेकिन यह भरोसा हुआ कैसे? ऐसा कोई थर्मामीटर नहीं आता कि ऐसे रखें कि तुरन्त हमें पता चल जाए कि अंदर आत्मा है? थर्मामीटर होता है ऐसा?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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