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________________ डिस्चार्ज में तो स्वतंत्रता होती ही नहीं, लेकिन चार्ज में भी आत्मा की स्वतंत्र शक्ति नहीं है, डिस्चार्ज के धक्के से नया चार्ज हो जाता है, अज्ञानता के कारण । गतजन्म में कर्मों का 'चार्जिंग' योजना के रूप में होता है, जो इस जन्म में रूपक के रूप में, डिस्चार्ज के रूप में होता है। योजनरूप होता है, तभी तक उसमें परिवर्तन संभव हो सकता है। रूपक में आने के बाद ऐसा असंभव ही है। इस जन्म का बदलाव अगले जन्म में फल देगा और यदि आयोजन ही रुक जाए तो आत्यंतिक मुक्ति मिल जाए! एकेन्द्रिय से मनुष्यगति तक का परिवर्तन ‘इवोल्युशन की थ्योरी' के अनुसार वाजिब है, लेकिन मनुष्य में आने के बाद, अहंकार की गरदन ऊँची होती है, कर्ता बनकर 'क्रेडीट-डेबीट' करने लगता है, मनुष्य जीवन में बरती हुई वृत्तियाँ-पाशवी, मानवी, राक्षसी या दैवीय वृत्तियों के परिणाम स्वरूप चतुर्गति के द्वार खुल जाते हैं। एक बार मनुष्य बनने के बाद, बहुत हुआ तो आठ जन्म तक अन्य योनि में भटकर 'बेलेन्स' पूरा करके वापस मनुष्य में ही आ जाता है। भटकन का रुकना तो आत्मज्ञान के बाद ही हो सकता है! आत्मज्ञान होने के बाद की योनियाँ क्रमबद्ध चलती हैं, यदि ऐसा नहीं हो तो सबकुछ नियति के अधीन ही माना जाएगा न? जीवों का प्रथम बार मनुष्य योनि में आने का काल निश्चित है, लेकिन मनुष्यगति में आने के बाद अहंकार खड़ा होने से उलझनें खड़ी हो जाती हैं, परिणामस्वरूप चतुर्गति में भटकता है। कैसे भी संजोगों की भीड़ में खुद, अहंकार को मुक्ति की दिशा में ही मोड़े तो मोक्ष मिल जाएगा, लेकिन अहंकार को मोड़ना आसान नहीं है, इसलिए मनुष्य में आने के बाद मोक्ष में जाने का काल निश्चित नहीं है। वह तो जब सम्यक्दृष्टि हो जाए, उसके बाद ही मोक्ष में जाने का काल निश्चित हो सकता है। यह तो लोकसंज्ञा के अनुसार चलकर संसार की तरफ़ बढ़ता जाता है। 'ज्ञानीपुरुष' को पाने के बाद, ज्ञानी की संज्ञा के अनुसार प्रवर्तन करे तो मोक्ष प्राप्त करेगा! सूर्य के संयोग से परछाई उत्पन्न होती है, दर्पण के संयोग से प्रतिबिंब उत्पन्न होता है, उसमें सूर्य का या दर्पण का कर्तापन कितना? परछाई को
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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