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________________ आप्तवाणी-८ ११५ थीं, उतनी वेद में हैं, और बुद्धिगम्य से आगे जाने के लिए 'गो टु ज्ञानी' कि जिनमें बुद्धि बिल्कुल है ही नहीं। जो अबुध कहलाते हैं ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' के पास जा तो तुझे आत्मा प्राप्त होगा, वर्ना आत्मा प्राप्त नहीं होगा। बुद्धिवाले के पास आत्मा नहीं होता। आत्मा है तो बुद्धि नहीं है और बुद्धि है, तो आत्मा होगा ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : जैन धर्म के अध्ययन से आत्मज्ञान होता है, आपका ऐसा कहना है? दादाश्री : नहीं। और जो वेदांत के चार वेद हैं, उनके अध्ययन से भी आत्मज्ञान नहीं होता। चार वेद हैं, वे सब जब पूरे हो जाते हैं, तब इटसेल्फ कहते हैं कि 'दिस इज नॉट देट।' तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है, वह इनमें नहीं है। इसलिए 'गो टु ज्ञानी।' आत्मा पुस्तक में उतारा जा सके ऐसा नहीं है। आत्मा अवर्णनीय है, अवक्तव्य है, यानी कि पुस्तक में उतारा जा सके ऐसा है ही नहीं। अतः यह 'ज्ञानीपुरुष' का ही काम है। जिनका आत्मा प्रकट हो चुका है, सिर्फ वे ही आत्मा बता सकते हैं। वर्ल्ड में अन्य किसी और के बस का यह काम नहीं है। प्रश्नकर्ता : बता नहीं सकते लेकिन अभ्यास करवा सकते हैं न? दादाश्री : सिर्फ डायरेक्शन दे सकते हैं, इशारा दे सकते हैं। यानी कि आभास जैसा हो सकता है, लेकिन मूल वस्तु का साक्षात्कार नहीं करवा सकते। प्रश्नकर्ता : लेकिन खुद के आत्मा का खुद साक्षात्कार कर सकता है न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। 'ज्ञानीपुरुष' के बिना साक्षात्कार नहीं हो सकता, किसीका भी नहीं हुआ है। जो मुक्त हैं, वे ही छुड़वा सकते हैं । वही इस जंजाल में बँधा हुआ है, तो फिर हमें किस तरह से छुड़वा सकेगा? अतः तरणतारण पुरुष की आवश्यकता है। जो खुद तर चुके हैं और अनेकों को तारने में समर्थ हैं, वहाँ पर अपना काम होगा।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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