SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ आप्तवाणी-८ वहाँ पर ऐसा कहा गया कि 'सत्य का शोधन अपने आप ही हो सकता है!' लो! बाकी सबकुछ तो कॉलेज में जाएँ, तब होता है और इस सत्य को घर पर ही ढूँढ सकते हैं। बाकी विकल्पी कभी भी निर्विकल्पी बन ही नहीं सकता। विकल्पी बीज कभी भी निर्विकल्पी बन ही नहीं सकता और बेकार भटकता रहता है। निमित्त की ज़रूरत है। विकल्पी और निर्विकल्पी, दोनों दृष्टिफेर हैं। जब कि यदि निर्विकल्पी की दृष्टि मिल जाए, कोई कर दे, तो फिर वह निर्विकल्प हो जाता है। 'दृष्टि' को ही चेन्ज करने की ज़रूरत है। इसमें अभ्यास से नहीं होगा। यदि अभ्यास से होना होता, तब तो अभ्यास कर देते। लेकिन पूरी दृष्टि ही अलग है। यानी कि जब खुद का स्वरूप जान ले तब निर्विकल्प बनता है। निर्विकल्प बन जाए तब अहंकार और ममता चले जाते हैं, बस। अहंकार और ममता चले गए, तो व्यतिरेक गुण चले गए सारे। ममता, वह लोभ और कपट है, अहंकार क्रोध और मान है। ये चार गुण इस तरह से उत्पन्न हुए थे, 'ज्ञानीपुरुष' इन दोनों चीज़ों को जुदा कर देते हैं, डिविज़न कर देते हैं, आत्मा और अनात्मा में लाइन ऑफ डिमार्केशन' डाल देते हैं, तब फिर दोनों अलग हो जाते हैं। बाकी तो हैं ही अलग, अलग ही हैं। अबुध होने पर, अभेद हुआ जाएगा प्रश्नकर्ता : लेकिन वेद तो अभेद का निरूपण करते हैं न? दादाश्री : हाँ। लेकिन अभेद का निरूपण तो हर एक ने किया ही है न! लेकिन अभेद प्राप्त होना मुश्किल है। जब तक वेदों को घोलकर पी नहीं जाए, तब तक अभेद नहीं हो सकता। क्योंकि जब तक बुद्धि नहीं जाती तब तक अभेद नहीं हुआ जा सकता। बुद्धि भेद डालती है। भेद कौन डालता है। जो बुद्धिवाले हैं न, वे ही भेद डालते हैं। ___ अब यदि आपके इस पूरे गाँव को अबुध बनाना हो तो कितना समय लगेगा? बुद्धि ही नहीं हो ऐसा मनुष्य बनाना हो तो कितना समय लगेगा? तुरन्त हो जाएगा?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy