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________________ आप्तवाणी-८ १०१ और इस जगत् में किसीको नास्तिक नहीं कह सकते। नास्तिक तो कहते होंगे? नास्तिक किसे कहते हैं? इस जगत् में कोई नास्तिक जन्मा ही नहीं है और जो 'मैं नास्तिक हूँ' बोलता है, वह उसका विकल्प है। बाकी, नास्तिक कोई जन्मा ही नहीं है। नास्तिक का अर्थ क्या है? कि जिसका अस्तित्व नहीं है उसे नास्तिक कहते हैं। तो तू अस्तित्व का सबूत तो है ही। 'मैं नास्तिक हूँ' ऐसा बोलता है, वह इटसेल्फ ही अस्तित्व का सबूत तो है ही। यह जो बोलता है, वही अस्तित्व कहलाता है। और नास्तिक शब्द तो विकल्प है। विकल्प अर्थात् एक तरह का अहंकार है कि 'मैं नास्तिक हूँ और यह आस्तिक है।' प्रश्नकर्ता : अभी तो ऐसा है न, जब तक खुद अस्तित्व की स्थापना नहीं कर सकता, 'खुद है' ऐसा एक्जेक्टनेस में 'फील' भी नहीं कर सकता, तब तक खुद का अस्तित्व है, लेकिन वह खुद उसकी प्रतीति नहीं कर सकता न? दादाश्री : नहीं। जिसे 'मैं हूँ' ऐसा नहीं रहता हो, ऐसा कोई मनुष्य है ही नहीं न! 'मैं हूँ' ऐसा सबको रहता ही है। 'मैं हूँ' यह शब्द ही खुद अस्तित्व को ज़ाहिर करता है। ऐसा है न, जीवमात्र का खुद का अस्तित्व है और उस अस्तित्व का उसे भान है। इसलिए 'मैं हूँ' ऐसा कुछ भान उसे है और उसका वह भान कभी भी जाता नहीं है। रात को नींद में भी 'मैं ही हूँ' ऐसा भान रहता है। यानी अस्तित्व का भान रहता ही है। अब उसे वस्तुत्व का भान नहीं होता कि 'मैं कौन हूँ?' वह ज्ञान यदि 'ज्ञानीपुरुष' करवाए और वह प्रकट हो जाए, तो फिर वह 'एडवान्स' हो जाता है। हम क्या कहते हैं कि जीवमात्र को अस्तित्व का भान तो है ही, लेकिन वस्तुत्व का भान नहीं है। वस्तुत्व का भान हो जाए कि 'खुद कौन है' तो फिर पूर्णत्व होता रहेगा। और पूर्णत्व, वह निरालंब दशा है, वह अपने आप ही सहज स्वभाव से होता रहेगा। दूज होने के बाद फिर तीज होती है, चौथ होती है, अपने आप होती ही रहती है न! हम यदि आड़ापन
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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