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________________ आप्तवाणी-८ तो अचल है, बिल्कुल भी चंचल नहीं है । उस आत्मा को नहीं जानने से ही कहा है कि ‘भाई, आत्मज्ञान जानो ।' बड़े-बड़े संतपुरुष भी ऐसा कहते हैं कि, ‘आत्मज्ञान जानो । ' ' आप संतपुरुष हुए तब भी आप नहीं जानते?' तब कहते हैं, ‘नहीं। वह आत्मज्ञान ही जानने जैसा है!' यानी आत्मज्ञान जानना वह तो 'ज्ञानीपुरुष' का काम, और किसीका काम ही नहीं है । कभी भी किसी और ने आत्मज्ञान जाना ही नहीं है । सभी जिसे आत्मा कहते हैं न, वे 'मिकेनिकल आत्मा' की ही बात को समझे हैं। आत्मा जानने के बाद तो उसकी दशा कुछ और ही होती है ! ९९ पूरा वर्ल्ड आत्मा का एक अंश भी नहीं चख सकता, ऐसा आत्मा है, अचल आत्मा है और वही खुद परमात्मा है । यह तो ‘आत्मा' शब्द बोलकर लोग पकड़ बैठे हैं कि, 'मैं आत्मा हूँ, मैं शुद्धात्मा हूँ।' अरे, नहीं है तू शुद्धात्मा । दूसरों में तुम्हें शुद्धात्मा दिखता है? तब फिर कोई नुकसान करे तो क्यों चिढ़ जाते हो? यानी ये सारा ‘मिकेनिकल आत्मा' ही है। यह जो पूरे जगत् ने अभी खोज की है न, वही ‘मिकेनिकल आत्मा' है । या फिर जिसकी खोज कर रहे हैं, वह आत्मा जब मिलेगा, तब वह 'मिकेनिकल आत्मा' ही मिला होगा। यानी कि मूल शुद्धात्मा के अलावा अन्य सारा सचर भाग है, 'मिकेनिकल' है। और शुद्धात्मा, वह अचल भाग है। शुद्धात्मा ज्ञायक स्वभाव का है और इस सचर का मतलब है 'मिकेनिकल' होना, क्रियाकारी होना। यानी ये दोनों ही चीजें अलग हैं। अलग तरह से चलती है, जुदापन का अनुभव बर्ते ऐसा है, लेकिन मात्र उसका भान नहीं है, उस भान को लाने के लिए ही तो हम 'ज्ञान' देते हैं। मिश्रचेतन, बाद में मिकेनिकल बना प्रश्नकर्ता : एक जगह पर आपने 'मिश्रचेतन' शब्द कहा है, तो उस ‘मिश्रचेतन' और इस 'मिकेनिकल चेतन', इन दोनों में क्या फ़र्क़ है ? दादाश्री : सब एक ही है, लेकिन मिश्रचेतन तो शुरूआत में कहा
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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