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________________ आप्तवाणी-८ के हैं। भेद तो सिर्फ, उसकी दृष्टिभेद से ये सब भेद दिखते हैं। और यह भेद कुदरत का संचालन है। और वह भी बाह्य भेद है, 'कपड़ों' का भेद है, मूल भेद नहीं है। प्रश्नकर्ता : आचरण में भेद है। जिस तरह से गाय, भैंस, बकरी वगैरह शाकाहारी हैं और सिंह और बाघ मांसाहारी हैं, यह भेद किसने उत्पन्न किया? यह भेद है, वह किसलिए है? यह जीव का भेद है, शरीर का भेद है या भौतिक भेद है? यह जीव में भेद है तो उन लोगों के जीवन में भेद है? दादाश्री : नहीं। ऐसा नहीं है। वह मैं आपको बताता हूँ, सुनो। कितनी ही कौम हैं, वे सभी मांसाहार नहीं करते न? अब उन्हें जब जानवर में जाना पड़ा तो किसमें जाएँगे? जहाँ मांसाहारी कौम नहीं होती, वहाँ पर जाएँगे। यानी कि गाय-भैंस जो मांसाहार नहीं करते हैं, उनमें जाते हैं। और मांसाहारी राजा वगैरह जब जानवर में जाते हैं, तब वे फिर किसमें जाते हैं? वे गाय-भैंस में नहीं जाते, वे तो सिंह-बाघ की योनि में जाते हैं। अतः यह सारी व्यवस्था बिल्कुल नियमबद्ध है। हर एक देश में 'वॉरियर्स' (सैनिक) नियम से पैदा होते ही हैं। ऐसा है, इस जगत् में सभी लोगों के विचार एक ही तरह के नहीं होते, हर एक मनुष्य के विचार अलग-अलग ही होते हैं। उसका क्या कारण है? यह गोलाकार होता है, 'सर्कल', ऐसा आपने देखा है? इसमें जगत् में मनुष्य तीन सौ साठ डिग्रियों पर जगत् के मनुष्य हैं। यानी जिस 'डिग्री' पर-जिस अंश पर खड़ा है, उसे वहाँ से जैसा दिखता है वैसा ही वह बोलता है। उसमें उसका दोष नहीं है। यानी की 'डिग्री' पर सब मतभेदवाला है। क्योंकि अलग-अलग अंश हैं। और बीच में 'सेन्टर' में आते हैं तब पता चलता है कि 'परमात्मा क्या है? जगत् क्या है? किस तरह से जगत् चल रहा है?' जगत् कल्याण की अद्भुत, अपूर्व भावना प्रश्नकर्ता : अब 'आत्मा है' ऐसा तो जैनों ने, वेदांतियों ने और सभी
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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