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________________ आप्तवाणी-८ ८१ चार इन्द्रियाँ थीं और कान सबसे अंत में आता है। सबसे अंत में कान आता है। अंतिम डेवलपमेन्ट कान का है। फिर इससे पहले का डेवलपमेन्ट कान की जगह पर छेदवाला होता है, नहीं तो चार इन्द्रियाँ होती हैं। चौथी इन्द्रिय आँख होती है, तब कीट बनता है। तो आँख खुली कि उजाले पर उसे मोह उत्पन्न होता है। इसलिए उजाले के पीछे ही मर जाता है। यह कान खुला तो सुनने के पीछे ही मर जाता है। परे दिन कहाँ से सुनें, कहाँ से सुनूँ, वह फिर रेडियो सुनता है, गीत सुनने जाता है! जिसकी नई-नई इन्द्रिय विकसित हुई हो, उसे ऐसा सब होता है। ___ इन चींटियों में तीसरी नई इन्द्रिय निकली की भाग-दौड़, भाग-दौड़ करके यहाँ पर कुछ लटकाया हो न, तो अगर पतीली सीलिंग से तीन फूट नीचे हो, तब भी यहाँ ज़मीन पर से पता चल जाता है, नाक की इन्द्रिय से, कि यहाँ पर घी है। अब वह समझती है कि वहाँ पर किस तरह से पहुँचा जाए। वह फिर ऐसे दीवार पर चढ़कर ऊपर जाती है और फिर नीचे उतरती है और फिर घी चाटती है। क्योंकि यह नाक की इन्द्रिय उत्पन्न हुई है तो उसके पीछे ही पूरे दिन भाग-दौड़ करती रहती है! बाकी ये लोग चौर्यासी लाख योनियाँ कहते हैं न, वे तो, सब मिलाकर चौर्यासी लाख योनियाँ जीव जाति की हैं। बाकी वैसे फिर से चौर्यासी में घूमने जाएँगे तो फिर दिखेंगे ही नहीं न, कैसे दिखेंगे? लेकिन ऐसा नहीं है। वह तो यहीं पर भटकते रहना है। मनुष्य में से जो जानवर में जाता है, वह आठ जन्मों तक उस तरफ़ जाता है, और वापस यहीं पर आ जाता है। प्रश्नकर्ता : लेकिन उत्क्रांति के नियम के अनुसार मनुष्यपन में से निचली गति में नहीं जा सकते न? दादाश्री : ऐसा है, मनुष्यगति ही सिर्फ ऐसी गति है कि जहाँ पर चार्ज और डिस्चार्ज दोनों क्रियाएँ हो रही हैं, जब कि देवगति सिर्फ डिस्चार्ज के रूप में ही है, तिर्यंचगति डिस्चार्ज के रूप में ही है, नर्कगति डिस्चार्ज के रूप में ही है। यानी मनुष्यगति में से, जो जानवरगति में या देवगति में या
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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