SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ चोर के वहाँ जन्म पाया हो, लेकिन खुद यदि अहंकार को नहीं मोड़े तो कुछ भी नहीं। क्योंकि मनुष्यपन है, इसलिए अधिकारी हुआ न ! यानी अहंकार का कर्ता हुआ है । उसमें यदि 'खुद' ' अहंकार' को नहीं मोड़े तो कुछ भी नहीं है। जन्म तो कहीं भी हो सकता है, कैसे भी संयोग मिल सकते हैं, लेकिन अहंकार को किस तरफ़ मोड़ना है; जैसे इन स्टीमरों में कुतुबनुमा होता है न, वैसा ही इसमें भी कुतुबनुमा रखना चाहिए। यानी कि अहंकार को ऐसा रखना चाहिए कि मुझे अब यह चलाना पड़ रहा है इसलिए मुझे ध्यान रखना है, ज़रा धीरे से, 'इस' दिशा में ही चलाना है । इस तरह मनुष्य का जन्म हुआ, तब से उसे 'खुद' को ही ' अहंकार' को मोड़ना है। प्रश्नकर्ता : और वह आसान तो नहीं है । दादाश्री : वह यदि आसान होता, तब तो सभी लोग कर लेते । वही कठिन है, आसान नहीं है ! बहुत ही कठिन है !! कठिन है इसीलिए तो, इतना जान लेने के लिए ही तो इतने सारे शास्त्र लिखे हैं ! लेकिन वही अत्यंत कठिन है न! ७६ कभी खुद को पसंद हो ऐसी कोई बात आती है और फिर से नासपंदगीवाली आती है, 'उसे' पसंदीदा संयोग मिलता है और नापसंद मिलता है। अब जब मनपसंद आता है, तब उनमें वीतराग क्या कहते हैं कि इनमें से कोई भी चीज़ पसंद करने जैसी नहीं है और नापसंद करने जैसी भी नहीं है, इनसे 'तू' अलग रह, क्योंकि नापसंद करने जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। फिर भी 'तू' अपने आप बँध रहा है कि यह वस्तु अच्छी है। और इसे 'अच्छी है' कहा इसलिए दूसरे को 'खराब है' ऐसा बोलेगा । एक को अच्छा कहा इसलिए दूसरे को खराब कहेगा ही । इसलिए वीतराग क्या कहते हैं? ये सभी संयोग ही हैं । और यह तो 'हमने विभाजित किया है कि यह संयोग अच्छा है और यह संयोग खराब है।' वीतरागों ने इन सभी संयोगों को ऐसा ही कहा है कि, 'ये सभी संयोग ही हैं। और ये संयोग फिर वियोगी स्वभाववाले हैं, इसलिए किसी भी संयोग को पसंदीदा मत बनाना ताकि नापसंद संयोग को तुझे धक्का नहीं मारना पड़े । यदि तू
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy