SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ ६७ रूपांतर में सबकुछ आ गया। रूपांतर का मतलब क्या? कि उत्पन्न होना और थोड़ी देर टिकना और नाश हो जाना। प्रश्नकर्ता : एक चीज़ का अभी तक ख़याल नहीं आया। जगत् की उत्पत्ति को अनादि काल से कहा है, परन्तु उत्पत्ति का कोई कारण तो होना चाहिए न? दादाश्री : उसका मूल कारण यह पज़ल है। प्रश्नकर्ता : इस पज़ल को सोल्व करने के लिए कोई शक्ति होगी न? दादाश्री : नहीं, इसमें किसी शक्ति की ज़रूरत नहीं है। यह तो, अगर विज्ञान को जान लें तो पज़ल 'सोल्व' हो जाएगी। यह जगत् छह तत्वों से बना हुआ है। तत्व अर्थात् अविनाशी और वे तत्व खुद के स्वभाव में ही रहते हैं। परन्तु तत्व आमने-सामने समसरण होते हैं, इसलिए ये सब तरह-तरह के दिखाव दिखते हैं! प्रश्नकर्ता : ये छह तत्व कौन-कौन से हैं? दादाश्री : एक चेतन तत्व हैं, दूसरा जड़ और रूपी तत्व हैं। चेतन अरूपी हैं। तीसरा यह जड़ और चेतन को गति करवानेवाला तत्व है, उसका नाम गतिसहायक तत्व है। और यदि अकेला गतिसहायक तत्व होता तो सभीकुछ गति ही करता रहता। इसलिए फिर जड़ और चेतन को स्थिर करने के लिए स्थितिसहायक तत्व है। ये चार तत्व हुए और पाँचवा आकाश और छठ्ठा काल तत्व! इन छह तत्वों से जगत् उत्पन्न हुआ है। ये छह के छह तत्व शाश्वत हैं। कुदरत की अगम्य प्लानिंग यह जगत् स्वभाव से चल रहा है। हर एक वस्तु अपने स्वभाव में ही है और स्वभाव से बाहर कुछ भी नहीं गया है। सिर्फ यह जो व्यवहार है, यह पूरा ही समसरण मार्ग है, और इस समसरण मार्ग में ये जीव आए
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy