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________________ संपादकीय वाणी सुनने के उदय तो अनेक आए, लेकिन वह ऐसी कि जो मात्र कान या मन को स्पर्श करके चली गई । लेकिन हृदयस्पर्शी वाणी सुनने का संयोग नहीं मिला । ऐसी हृदयस्पर्शी वाणी कि जो सीधे (अंतर में) उतरकर अज्ञान मान्यताओं को बिल्कुल फ्रैक्चर करके सम्यक दृष्टि खोल दे, जो निरंतर क्रियाकारी बनकर ज्ञान - अज्ञान के भेद को प्रकाशमान करती रहे, ऐसी दिव्यातिदिव्य अद्भुत वाणी तो वहीं पर प्रकट हो सकती है कि जहाँ परमात्मा संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से प्रकट हो चुके हों ! ऐसी दिव्यातिदिव्य वाणी का अपूर्व संयोग वर्तमान में प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' के श्रीमुख से उपलब्ध हुआ है ! उस बेधक वाणी की अनुभूति प्रत्यक्ष सुननेवाले को तो होती ही है, लेकिन पढ़नेवाले को भी अवश्य होती है ! जिनका दर्शन केवल आत्मस्वरूप का ही नहीं, लेकिन व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र में सभी ओर से पहुँचकर, उस प्रत्येक क्षेत्र को, उस-उस वस्तु को सभी कोणों से तथा उसकी सभी अवस्थाओं से प्रकाशित कर सकता है तथा उसे ‘जैसा है वैसा' वाणी द्वारा बता सकता है ! ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' की अनुभवसहित निकली हुई वाणी का सर्वजनों को लाभ मिले, उस हेतु से आप्तवाणी श्रेणी - ७ में उनकी जीवन-व्यवहार से संबंधित उद्बोधित वाणी का संकलन किया गया है। जीवन की सामान्य से सामान्य घटना को 'ज्ञानीपुरुष' जिस दृष्टि से देखते हैं, उसका वर्णन जिस सादी - सरल भाषा में करते हैं, उन-उन घटनाओं से संबंधित व्यक्तियों के मन-बुद्धि-चित्तअहंकार, वाणी तथा वर्तन को वे 'जैसा है वैसा' देखकर अपने समक्ष उसका हूबहू तादृश्य वर्णन खड़ा कर देते हैं । 'भुगते उसी की भूल, ' 'जान-बूझकर धोखा खाना, ' 'कमी नहीं, ज़्यादा भी नहीं,' ‘फ्रैक्चर हुआ या जुड़ा ? ' ' इंतज़ार करने के जोखिम, ' 'जगत् के प्रति निर्दोष दृष्टि' ऐसी अनेक मौलिक, स्वतंत्र और 'मोस्ट प्रेक्टिकल' व्यवहारिक चाबियाँ ' ज्ञानीपुरुष' द्वारा प्रथम बार जगत् को मिली हैं। 8
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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