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________________ उलझन में भी शांति! (३) ४५ खिचड़ी और एक दिन चावल! अरे, इतना सारा तरह-तरह का भोजन, लेकिन यह तो रोज़ वही का वही, और 'अपने घर' में तो अपार सुख है और अपार सामग्रियाँ हैं। वह सभी सामान वहाँ पर रखकर यहाँ आए, तो यहाँ पर रोज़ वही की वही कोठड़ी कैसे पसंद आए? फिर संडास भी बदबू मारती है। रोज़ अलगअलग हो और आनंद आए तो हम समझें कि मोक्ष में जाने की क्या ज़रूरत है? लेकिन यह तो सात महल हों और सभी तरहतरह के कमरे और तरह-तरह के पलंग हों, फिर भी आखिर में भीतर चैन नहीं पड़ता, वहाँ पर पुसाए ही कैसे? फिर अर्थी निकालते हैं, तब यह सब फ्रैक्चर हो जाएगा। ये लोग तो अर्थी निकाले बगैर रहते ही नहीं न! अतः यदि अनेक वराइटीज़ नहीं मिल रही हों तो अपने घर पर चले जाना अच्छा। अपने घर पर तो अपार सुख है! लेकिन ज्ञानी मिलें, तब वे हमें हमारे घर तक ले जाएँगे, वर्ना घर तक कोई पहुँचा ही नहीं। ज्ञानी पुरुष खुद पहुँच चुके हैं, इसलिए वे ले जा सकते हैं। देखो न, आपके लिए रविवार, वह आनंद का दिन है या दुःख का दिन? प्रश्नकर्ता : काम करना पड़े तो दुःख का दिन लगता है। दादाश्री : नहीं, लेकिन रविवार का दिन दुःख का दिन है या आनंद का दिन? प्रश्नकर्ता : वैसे तो आनंद का दिन है कि, बाहर घूमनेफिरने जाने को मिलता है, उससे आनंद रहता है। दादाश्री : यानी मुक्त जीवन चाहते हो? मुक्त जीवन का मतलब हमें पसंद आए, जहाँ अनुकूल आए वहाँ पर जाएँ-आएँ, ऐसा पसंद है न? अब कुछ लड़कों का जीवन मुक्त होता है। हम कहें, 'क्यों भाई?' तब कहेगा, 'बिल्कुल बेकार हूँ।' तो उसे
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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