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________________ ४० आप्तवाणी-७ रहा करता है। ये तो नोट गिनते ही रहते हैं, लेकिन वे सभी नोट यहीं के यहीं रह गए और गिननेवाले चले गए! नोट कहते हैं कि, 'तुझे समझना हो तो समझ लेना, 'हम रहेंगे और तू जाएगा!' इसलिए हमें ज़रा सावधान हो जाना चाहिए न! और कुछ नहीं, हमें उनके साथ कोई बैर नहीं बाँधना है। पैसे से हम कहें, 'आओ भाई।' उसकी ज़रूरत है! सभी की ज़रूरत तो है न? लेकिन उसके पीछे ही तन्मयाकार रहे! तो गिननेवाले गए और पैसे रह गए, फिर भी गिनना पड़ता है। वह भी चारा ही नहीं न! शायद ही कोई सेठ ऐसा होगा कि मुनीम जी से कहे कि, 'भाई, मुझे खाते समय परेशान मत करना, आप आराम से पैसे गिनकर तिजोरी में रखना और तिजोरी में से ले लेना।' उसमें दख़ल नहीं करे ऐसा शायद ही कोई सेठ होगा। हिन्दुस्तान में ऐसे दो-पाँच सेठ होंगे जो निर्लेप रहें! वे मेरे जैसे!! मैं कभी भी पैसे नहीं गिनता!! यह क्या झंझट! इन लक्ष्मी जी को आज मैंने बीस-बीस सालों से हाथ में नहीं पकड़ा, तभी इतना आनंद रहता है न? जब तक व्यवहार है तब तक लक्ष्मी जी की भी ज़रूरत है, उसकी मनाही नहीं है, लेकिन उसमें तन्मयाकार नहीं होना चाहिए। तन्मयाकार तो नारायण में होना। सिर्फ लक्ष्मी जी के पीछे पड़ेंगे तो नारायण चिढ़ जाएँगे। लक्ष्मीनारायण का तो मंदिर है न! लक्ष्मी जी क्या कोई ऐसी-वैसी चीज़ है? आपको कुछ पसंद आई यह बात?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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