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________________ आप्तवाणी-७ मेरी क़ीमत करेंगे। लेकिन इसे देखने के लिए भी कोई फालतू नहीं है न! लेकिन फिर भी मन में फूला नहीं समाता, और थोडा भी घर से बाहर जाना हो न, तो पेन्ट बदलता रहता है। 'एय, दूसरी पेन्ट लाओ!' फिर कहेगा, 'यह नहीं, टेरेलीन की पेन्ट लाओ।' ये लोग क्या ऐसे-वैसे हैं?! अरे, क्या मान लिया है तूने यह? तुझे देखने के लिए कोई बाप भी फालतू नहीं। तुझमें देखने जैसा है ही क्या? लेकिन फिर भी अच्छी पेन्ट पहनकर मन में न जाने क्या मानता रहता है! ऐसा है यह जगत्! इस काल की बातें तो हैं न, मैंने ऐसा एक भी इंसान नहीं देखा कि जिसकी बात करेक्ट हो। आधे पागल जैसे, हाफमेन्टल लोग हैं। इसीलिए पहले एक बार तो, इनकी बातों को उतरने ही मत देना, पहले जाँच करना। वर्ना तो यदि उतरने दोगे न, तो आपको इफेक्ट होगा, यानी कि ये आधे पागल जैसों का काल है। अभी तो अपने को कहने आते हैं कि 'आपका गोडाउन जल रहा है।' तब पूछना चाहिए कि, 'हमारा गोडाउन जल रहा है?' तब कहेगा कि, 'मैं अभी देखकर ही आ रहा हूँ न!' फिर आराम से पानी-वानी पीकर हमें जाना चाहिए। पता लगाएँ कि हकीकत में है क्या? अब वह कहता है कि आपका ही जल रहा है। फिर भी हम कहें कि 'नहीं, ज़रा पता तो लगाएँ!' तब वहाँ जाकर देखे तो नगीनभाई का जल रहा होता है, यानी इस जगत् का कुछ ठिकाना नहीं है! किसी भी बात के लिए कोई ठिकानेवाला आदमी मैंने देखा ही नहीं। ऐसा विचित्र है यह काल। मनुष्य बेचारे बिदके हुए घोड़ों जैसे हैं। घबराहट बैठ गई है कि क्या होगा, क्या होगा?' तेरा कोई बाप भी ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) नहीं है, वहाँ क्या हो जाएगा फिर? इतनी हिम्मत देनेवाला कोई मिले, तो भी हिम्मत आ जाएगी न? मैंने तो क्या कहा है कि तेरा ऊपरी कोई नहीं है। तुझमें दख़ल करनेवाला भी कोई नहीं है, और यह परमानेन्ट
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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