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________________ १४. पसंद, प्राकृत गुणों की जगत् संबंध की यथार्थता... २०९ ...और वीतरागों के साथ... २१८ ...तो अहंकार ठिकाने रहेगा २१० ओहोहो! ज्ञानी की करुणा! २२० मुश्किल में लालच, क्यों? २११ पराये बाज़ार में गुनहगार कौन?२२१ स्वार्थवाले प्रेम ने, बढ़ाया संसार २१३ सरलता, वह तो महान पूँजी २२२ ...गर्ज़ है, इसलिए फँसते हैं २१६ प्रकृति नहीं बदलेगी, ज्ञान बदलो२२३ पागल को गाँव दे दें तो... २१७ विश्वासघात के समान कोई... २२४ १५. दुःख मिटाने के साधन अपने ही हिसाब... २२६ ...कल्याण की श्रेणियाँ ही भिन्न२३४ जो मोल ले, उसे दुःख २२७ अंततः उपकार खुद पर ही... २३६ दुःख, खुद का ही मिटाओ न! २३० यह स्वार्थ है या परार्थ? २३६ सेवा-कुसेवा, प्राकृत स्वभाव २३४ कार्य का हेतु, सेवा या लक्ष्मी?२३९ १६. बॉस-नौकर का व्यवहार 'स्वतंत्र' बनाए, वह शिक्षण... २४३ अन्डरहैन्ड भी उपकारी बनें २४७ उकसाने में जोखिम किसे? २४४ ऊपरी कैसे पुसाए? २४८ उसमें भूल किसकी? २४५ अन्डरहैन्ड को 'डिसमिस'... २४९ १७. जेब कटी? वहाँ समाधान! जेब कटी, वहाँ हकीकत क्या... २५२ ...और चप्पल चोरी हो... २६४ कुदरत की कैसी ग़ज़ब की... २५६ जीवनपर्यंत, नियमबद्ध २६६ जेब कटी, समाधान... २५८ चीज़ों के उपयोग के नियम... २६६ संसार में बिना वजह कहीं कुछ... २६० जगत् में पोल चलेगी ही नहीं २६७ क़ीमत दर्शन की, न कि चप्पलों... २६४ १८. क्रोध की निर्बलता के सामने वीतरागों की सूक्ष्मता तो देखो २६९ सम्यक उपाय, जानो एक बार २७८ यह वीकनेस है या पर्सनालिटी? २७० परिणाम तो, कॉज़ेज़ बदलने... २७९ जगत्, शील से जीता... २७३ क्रोध, मात्र निर्बलता ही! २८१ प्रकृति, कषाय से ही गूंथी हुई २७६ क्रोध का शमन, किस समझ से?२८३ १९. व्यापार की अड़चनें अड़चनें, करवाएँ प्रगति २८६ हिसाब का पता चला तो चिंता...२९६ विषमता में समता, वही लक्ष्य २८७ फायदे-नुकसान की सत्ता... २९७ 39
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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