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________________ मंगलाचरण निज स्वभाव से सद्गुरु, अगुरु - लघु सर्वज्ञ हैं, सूक्ष्मतम सिद्ध परम्गुरु, सत्यम् निश्चय वंद्य हैं I तैंतीस कोटि देवगण, विश्वहितार्थ स्वागतम्, जग कल्याणक यज्ञ में मंगलमय दो आशीषम् । सिद्ध स्वरूपी मूर्तमोक्ष, गलती - भूल की माफी दो, व्यवहार में सद्बुद्धि हो, निश्चय में अभिवृद्धि दो । XXX समर्पण अहो ! अहो ! यह अक्रमिक आप्तवाणी, निकाले अज्ञान अंधेरा, तेज सरवाणी । संतप्त हृदय को शांतकर बनाए आत्मसन्मुखी, प्रत्येक शब्द करे सूझ ऊर्ध्वपरिणामी । विश्वसनीय आत्मार्थ, संसारार्थ प्रमाणी, मोक्षपथ पर एक मात्र पथप्रदर्शक समझाणी । फैलाए सदा वह प्रकाश, अहो ! उपकारिणी, खोलकर चक्षु, हे पथी ! रास्ता काट 'ठोकर' - बीनि । दिव्यातिदिव्य आप्तपुरुष अक्रम विज्ञानी, 'दादा' श्रीमुख से निकली वीतरागी वाणी । अहो ! जगत्कल्याणार्थ अद्भुत उपहाराणी, केवल कारुण्यभाव से विश्वचरणों में समर्पाणी । 3
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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