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________________ व्यापार की अड़चनें (१९) २९७ ही हैं न! तब मुझे हुआ कि इन सब में से कोई चिंता नहीं कर रहा, मैं अकेला ही कहाँ इसे सिर पर ओढ़कर बैलूं? उन दिनों इस विचार ने मुझे बचा लिया। बात तो सही है न? आपको कैसी लगती है मेरी बात? मेरा सोचना ठीक है न? प्रश्नकर्ता : ज्ञान होने से पहले की बात है न? दादाश्री : हाँ, ज्ञान होने से पहले की बात है। फायदे-नुकसान की सत्ता कितनी? एक व्यापार के दो बेटे, एक का नाम नुकसान और एक का नाम फायदा। नुकसानवाला बेटा किसी को पसंद नहीं है, लेकिन ये दो होते ही हैं। वह तो वे दोनों जन्में ही होते हैं। व्यापार में अगर नुकसान हो रहा हो तो वह रात को होता है या दिन में होता है? प्रश्नकर्ता : रात को भी होता है और दिन में भी होता दादाश्री : लेकिन अगर नुकसान हो रहा हो तब तो दिन में होना चाहिए न? रात को भी यदि नुकसान होता है, तो रात को तो हम जाग नहीं रहे थे तो रात को किस तरह नुकसान होगा? यानी नुकसान और फायदे के कर्ता हम नहीं है। वर्ना रात को किस तरह से नुकसान होता? और रात को फायदा किस तरह मिलेगा? क्या कभी ऐसा नहीं होता कि मेहनत करते हैं, फिर भी नुकसान होता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा होता है। दादाश्री : तो मेहनत करने से फायदा होता है या मेहनत करने से नुकसान होता है, उसका डिसीज़न क्या है? प्रश्नकर्ता : फायदा और नुकसान वह किसी के हाथ की बात नहीं है, वह तो 'व्यवस्थित' के हाथ में है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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