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________________ व्यापार की अड़चनें (१९) उसे दुःख माना जाएगा। लेकिन ये गालियाँ कोई पत्थर नहीं है कि लगे और खून निकले ! २८९ प्रश्नकर्ता : फिर भी अंदर बीच में स्वीकार हो जाता है और असर हो जाता है। दादाश्री : लेकिन मेरा कहना है कि गालियाँ क्या हमें ऐसे स्पर्श करती हैं? प्रश्नकर्ता : इसके बावजूद भी अंदर घाव लग जाते हैं। दादाश्री : लेकिन वह आपको कैसे छू सकती है? वह बोला वहाँ पर और तुझे यहाँ पर कैसे चोट लग गई? कौन सी दृष्टि से जगत् दिखे निर्दोष? पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) को मत देखना, पुद्गल की ओर दृष्टि करना ही मत । आत्मा की ओर ही दृष्टि रखना। भगवान महावीर को जगत् में सभी निर्दोष दिखे थे। कान में कीलें मारनेवाले भी निर्दोष दिखे। कोई दोषित है ही नहीं जगत् में। यदि कोई दोषित दिखता है तो, वह अपनी ही भूल है। वह एक प्रकार का अपना अहंकार है । यह तो हम बिना तनख़्वाह के काज़ी बनते हैं, उसी की फिर मार खाते हैं। 'मोक्ष में जाते हुए ये लोग हमें उलझाते हैं' हम जो ऐसा कहते हैं वह तो हम व्यवहार से कहते हैं । इस इन्द्रिय ज्ञान से जैसा दिखता है वैसा बोलते हैं, लेकिन वास्तव में हकीकत में वैसा नहीं है। हकीकत में तो लोग उलझा ही नहीं सकते न ! क्योंकि कोई जीव किसी जीव में किंचित्मात्र भी दख़ल कर ही नहीं सकता, ऐसा है यह जगत् । ये लोग तो बेचारे प्रकृति के अधीन हैं, प्रकृति जैसा नाच नचाती है उस अनुसार नाचते हैं, अतः उसमें किसी का दोष है ही नहीं । जगत् पूरा ही निर्दोष है। मुझे खुद को निर्दोष अनुभव में आता है। जब आपको वह निर्दोष
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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