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________________ है! नीति-अनीति का महत्व खत्म करके नियम को प्रधानता देकर 'ज्ञानीपुरुष' ने नई राह दिखाई है और उस प्रकार से मोक्ष में पहुँचने की खुद, भगवान के-वीतरागों के प्रतिनिधि के रूप में गारन्टी देते हैं! अनीति में, कि जहाँ पर नियम रह सके ऐसा है ही नहीं, वहाँ पर जो नियम रखना जानता है, उसका मन कैसे बाउन्ड्री में आ जाता है ! भूखा रहना आसान है, लेकिन 'तीन ही कौर खाओ!' इस प्रकार से कंट्रोल करना बहुत कठिन है! वैसी कठिनता को जो पार कर जाए, उसकी शक्तियाँ कैसी गज़ब की खिलेंगी! नियमपूर्वक अनीति के सटीक उदाहरणों द्वारा विशेष स्पष्टीकरण दे देते हैं! नियम से उसका मन बंध जाता है, इतना ही नहीं, लेकिन नीति से जो कैफ़ चढ़ जाता है वह, 'खुद अनीति कर रहा है' ऐसा भान रहने से नम्रता में रहता है, जिसकी मोक्षमार्ग में विशेष रूप से आवश्यकता है, नीति के बजाय! नियमपूर्वक अनीति में फिर घोटाला नहीं करना चाहिए, उतनी ही उसके लिए चेतावनी भी दी है। घोटाला करनेवाले की ज़िम्मेदारी दादाश्री खुद स्वीकार नहीं करते। 'नीति का पालन नहीं हो पाता' ऐसा करके अनीति में डूब रहे लोगों को दादाश्री नियमपूर्वक अनीति के तिनके से संसार पार करवा देते हैं ! ऐसी ज़िम्मेदारी, कौन लेगा? और भगवान के वहाँ पर नीति पर राग नहीं और अनीति पर द्वेष नहीं है, वहाँ तो अहंकार करने पर आपत्ति है! कोई भी वस्तु नियमपूर्वक की जाए, और वह भी 'ज्ञानीपुरुष' की आज्ञापूर्वक, तो वह अवश्य मोक्ष में ले जाएगी। ज्ञानी की आज्ञा इसमें मुख्य भूमिका अदा करती है, 'ज्ञानीपुरुष' इस प्रकार से खुलासा करते हैं। नीति का पालन करनेवाला जब संयोगों के शिकंजे में फँस जाए, तब अनीति करने लगता है और उसमें फँस जाता है, वहाँ पर 'नियमपूर्वक अनीति' के इस माध्यम द्वारा आगे मार्ग पार किया जा सकता है। अनीति में भी 'नो नेगेटिव पॉलिसी,' इस अक्रम मार्ग का विज्ञान तो देखो! 32
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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