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________________ व्यापार की अड़चनें (१९) २८७ कारण है। आत्मागों को यह समता रहता है, तब फिर विषमता में समता, वही लक्ष्य मुश्किलें तो आती ही रहेंगी। मुश्किलों के बगैर तो यह टाइम बीते ऐसा नहीं है, इसी का नाम दूषमकाल! महादुःखपूर्वक समता रहे, ऐसा यह काल है, यानी नब्बे प्रतिशत विषमता ही रहती है। उसमें थोड़ी बहुत समता रखनी, वह कोई ऐसी-वैसी बात है? अभी तो यह विषमता का सागर है। प्रश्नकर्ता : उसमें थोड़ी समता रह जाए, वह आश्चर्य है। दादाश्री : हाँ, वह आश्चर्य है और वैसी समता रहे तो उसका आनंद हमें स्पष्ट पता चलेगा। व्यवहार के लक्ष्य में समता बरते तो वह सब अहंकार के बढ़ने का कारण है। आत्मा का लक्ष्य बैठे बिना उसे समता नहीं कहा जा सकता इसलिए लोगों को यह समता रहती भी नहीं है। वह तो अगर ढीठ बन चुका हो तब समता रहती है, तब फिर वह समता नहीं कहलाती। ढीठ मतलब क्या कि, 'मुझे क्या? वह तो मरेगा!' इसे भगवान ने ढीठ कहा है। जो ऐसा कहे कि 'मुझे क्या,' उसका तो कभी भी हल नहीं आएगा। 'मुझे क्या' कह रहा है? अरे, तेरे बच्चे हैं या नहीं? तब फिर 'मुझे क्या' कैसे कह सकता है? लेकिन ऐसे ढीठ बन चुके हैं। ऐसा है, कि जब मनुष्य पर बहुत दु:ख पड़ें, तब फिर वह ढीठ बन जाता है। उधारी के धंधे में सुख का उधार प्रश्नकर्ता : मेरे घर में सभी प्रकार की मुश्किलें क्यों रहा करती हैं? धंधे में, वाइफ को, घर में सभी को ऐसी कुछ तकलीफें रहती ही हैं। दादाश्री : हम यदि लोगों को तकलीफें दें, तब फिर अपने यहाँ तकलीफ़ रहती है। हम यदि लोगों को सुख दें, तो अपने यहाँ सुख आता हैं। सुख चाहिए तो लोगों को सुख दो और तकलीफें
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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