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________________ क्रोध की निर्बलता के सामने (१८) २७५ करते हैं और बलवान का सामना करते हैं। यदि ऐसे लोग हों, तब उसे तो क्षत्रिय गुण कहा जाएगा। वर्ना पूरा जगत् कमज़ोरों को मारता ही रहता है। घर जाकर पति अपनी पत्नी पर शरवीरता दिखाता है। खूटे से बँधी हुई गाय को मारें तो वह किस ओर जाएगी? और खुली छोड़कर मारे तो? भाग जाएगी न, या फिर सामना करेगी। खुद की शक्ति होने के बावजूद भी इंसान सामनेवाले को तंग नही करे, अपने दुश्मन को भी दुःखी नहीं करे, वह बहुत बड़ा बल कहलाता है। अभी कोई आप पर गुस्सा करे और आप भी उस पर गुस्से हो जाओ तो वह कमज़ोरी नहीं कहलाएगी? यानी मेरा क्या कहना है कि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, ये सभी निर्बलताएँ हैं। जो बलवान है, उसे तो क्रोध करने की ज़रूरत ही कहाँ रही? लेकिन ये तो क्रोध का जितना ताप है उस ताप से सामनेवाले को बस में करने जाते हैं, लेकिन जिसे क्रोध नहीं है उसके पास कुछ होगा तो सही न? उसका शील नाम का जो चारित्र है उससे जानवर भी वश में हो जाते हैं। वाघ, सिंह, दुश्मन वगैरह, पूरी सेना सबकुछ वश में हो जाता है! क्रोध-मानमाया-लोभ तो खुली कमज़ोरी है और बहुत क्रोध आ जाए तो ये हाथ-पैरे ऐसे काँपते हुए नहीं देखे हैं आपने? प्रश्नकर्ता : शरीर भी मना करता है कि 'तुझे क्रोध नहीं करना है।' दादाश्री : हाँ, शरीर भी मना करता है कि यह अपने को शोभा नहीं देता। यानी क्रोध तो कितनी बड़ी कमजोरी है! अतः क्रोध नहीं होना चाहिए हममें। हममें लोभ भी नहीं होना चाहिए। लोभ का क्या अर्थ है? दूसरों का हड़प लेना। अपने पास होने के बावजूद दूसरों का हड़प लेना, वह लोभ कहलाता है। खानेपीने की अपनी लिमिट है। वह सब होने के बावजूद और भी आगे का सोचना, वह लोभ कहलाता है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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