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________________ २६६ आप्तवाणी-७ इसमें आपका क्या दोष? तब फिर उस लेनेवाले का भी क्या दोष? उसे कोई परेशानी होगी, तभी वह ले गया होगा न? बगैर परेशानी के तो कोई लेगा ही नहीं न! और जूते गए तो हम समझ लें कि किसी पुण्यशाली मनुष्य के हाथ में गए हैं न, उसके पुण्य होंगे तभी ऐसे महँगे जूते मिले न! नहीं तो नए जूते उसके भाग्य में कहाँ से आते? लेकिन जूते गायब हो जाएँ तो हमें समझ जाना चाहिए कि अपना ही हिसाब चुक गया है। जीवनपर्यंत, नियमबद्ध इन जूतों का नियम फिर ऐसा है कि आपके सात जूते जानेवाले होंगे, तो उन सात से आठवीं जोड़ी नहीं जाएगी।। आप फिर रोज़ नए जूते पहनकर जाओगे न, यदि आप में हिम्मत हो तो जाने दो, जाएँ उतने जाने दो। क्योंकि इसके साथ ही नियम बताया हुआ है। अतः कैसा भी चोर आ जाए न, फिर भी नहीं उठाएगा। यह नियम जान लिया हो तो अच्छा है न? तो बहुत हुआ तो सात जाएँगे, या दस जाएँगे या बारह जाएँगे। लेकिन उसका अंत आएगा या नहीं आएगा? इसलिए उसका अंत आ जाने दो न! क्योंकि यह सब अंतवाला है! चीज़ों के उपयोग के नियम क्या? अपने कनुभाई हैं, वे छोटे थे तब मुझसे क्या कहा कि, अंबालाल चाचा, मैं तो तीन ही कमीज़े सिलवाता है, लेकिन ये रसिकभाई पूरी छह-छह कमीज़े सिलवाते हैं। तब मैंने कहा, 'तू समझदार है, लेकिन तू तो तीन सिलवाता है, जबकि मैं तो दो सिलवाता हूँ।' फिर मैंने उसे समझाया कि यह जितना-जितना तू उपयोग कर रहा है न, वह तू तेरा अपना ही खर्च कर रहा है। अतः यदि तुझे बाद में कमी नहीं पड़ने देनी हो, तो तू अभी से ही संभाल-संभालकर उपयोग कर। इसका अर्थ तुझे समझ में आ गया न?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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