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________________ २६० आप्तवाणी-७ और आप कहते हो कि इसने मुझे मुश्किल में डाल दिया। अरे! मुश्किल में कहाँ डाल रहा है, यह तो आपको छुटकारा दिलवा रहा है। यानी कि दुनिया में कोई व्यक्ति आपको मुश्किल में डाल सके, ऐसा है ही नहीं। आपका ही हिसाब है यह, उसमें लोग तो निमित्त मात्र हैं। ज्ञान होने से पहले मैं बोम्बे की लोकल ट्रेन में जा रहा था, तो एक आदमी ने ऐसे भीड़ में जेब में हाथ डाला। मैंने कहा कि, 'भाई, कुल दस ही रुपये हैं, रहने दे न!' लेकिन वह लेकर चला गया। अतः यह तो सब ऐसा है। वह तो ले ही जाएगा! उसका है, तो वह ले ही जाएगा। एक व्यक्ति मुझे आकर जेब दिखाने लगा, मुझसे कहने लगा कि, 'देखो, मेरी यह जेब काट गया।' तब मैंने कहा कि, 'क्या ले गया?' तब कहता है कि, 'सिर्फ दो-चार कागज़ थे और रेल्वे का पास था और इस तरफ की जेब में पाँच हज़ार रुपये थे।' लो, पाँच हज़ार रह गए और कागज़वाला काटकर ले गया! तब मैंने कहा कि, 'दूसरी जेब में पाँच-दस रुपये रखने थे न, तो वह बाहर निकलकर चाय तो पीता। अगर कुछ नहीं मिलेगा तो निराश हो जाएगा बेचारा!' संसार में बिना वजह कहीं कुछ होता होगा? एक भाई गाड़ी में जा रहे होंगे, उनकी जेब में से सात सौ रुपये कोई ले गया, लेकिन उनके परिणाम नहीं बदले, तुरंत ज्ञान हाज़िर हो गया कि, 'व्यवस्थित' है। और उस जेब काटनेवाले के भी शगुन अच्छे ही हुए होंगे, तभी न! नहीं तो जेब में हाथ डाले और तीन ही रुपये मिलें तो क्या करेगा? दो घंटे में सात सौ रुपये की फीस तो यहाँ वकील को भी नहीं मिलती! लेकिन लोग जेब काटनेवाले को तिरस्कार की दृष्टि से देखते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। वह भी उसके हुनर के ही पैसे हैं न! मैं ऐसे किसी को पहचानता हूँ। वे मेरे पास कबूल भी कर लेते
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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