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________________ २२४ आप्तवाणी-७ है, वर्ना जगहें तो अनंत हैं, अनंत क्षेत्र हैं, क्षेत्रों का अंत नहीं सही बात वह है कि जिससे आपका और मेरा समाधान हो। वह फिर कानूनी हो या गैरकानूनी हो, लेकिन जहाँ समाधान होना रुक गया, उस बात को सही कह ही नहीं सकते न! यदि आप सही हो तो संसार के लोग आपकी कमियाँ नहीं निकालेंगे। शायद कभी दूसरे लोग निकाल लें कि जिन्हें आपके साथ रास नहीं आता हो ऐसी प्रजा होती है, वह कमियाँ निकालेगी लेकिन सज्जन पुरुष कमी नहीं निकालेंगे। प्रश्नकर्ता : मनुष्य ऐसी प्रकृति लेकर ही आए हों तो फिर वह प्रकृति कैसे बदलेगी? दादाश्री : नहीं, लेकिन साथ-साथ उसे ऐसा डिसाइड करना चाहिए कि मेरी यह प्रकृति दुःखदायी है, इसलिए जो सुखदायी है मुझे उस प्रकार से बर्ताव करना चाहिए, ऐसा डिसाइड करना चाहिए। प्रश्नकर्ता : प्रकृति बदल सकती है क्या? दादाश्री : प्रकृति नहीं बदलती, लेकिन अपना ज्ञान तो बदल सकता है न! प्रकृति अपना स्वभाव नहीं छोड़ती, लेकिन खुद का ज्ञान बदलता है और ज्ञान बदलने से उलझनें बंद हो जाती है! विश्वासघात के समान कोई दोष नहीं प्रश्नकर्ता : विश्वासघात करना, वह सबसे खराब है न? सभी दोषों में सबसे खराब विश्वासघात है न? दादाश्री : विश्वासघात तो बहुत ही गलत है। यह अणहक्क (बिना हक़) का भोगना वह सब विश्वासघात ही है। मिलावट करना भी विश्वासघात है। ये सब विश्वासघात के ही रूप हैं। कोई आपको विश्वास में लेकर विश्वासघात करें तो वह रूबरू विश्वासघात कहलाता
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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