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________________ पसंद, प्राकृत गुणों की (१४) तब मैं कहता हूँ कि, 'पहले से थी ही नहीं, तूने तो आज ही जाना, लेकिन मैं तो पहले से ही जानता हूँ!' अब वह अपनी जोखिमदारी पर बोल रहा है न! लेकिन मुझे तो उसे समझाकर मोड़ लेना पड़ेगा, नहीं तो उसे बहुत बड़ा दोष लगेगा न ! जैसे कि कोई कुत्ता यदि बहुत भौंक रहा हो तब उस पर हाथ फेरने से वह शांत हो जाता है ! उसी तरह जब ये इंसान बहुत भौंक रहे हों, तब यदि हम हाथ फेरें तब वे शांत हो जाएँगे। बहुत उग्र होगा, तभी बेचारा ऐसा करेगा न ! दुःख के मारे करता है न! सुख के मारे क्या कोई किसी के साथ कषाय करता है? सुखी व्यक्ति दूसरों के साथ कषाय करता है? लेकिन जो खुद दुःखवाला है वही सामनेवाले के साथ कषाय करता है। इसलिए हम उसे शांत कर देते हैं और फिर वापस विराधना तुड़वा देते हैं! क्योंकि उसने जान-बूझकर नहीं किया, नासमझी में किया है। २१९ यानी आजकल के लोगों ने जान-बूझकर कोई गुनाह किया ही नहीं, ये इतने अच्छे लोग हैं आज के ! ये सभी गुनाह नासमझी से ही हो गए हैं। जान-बूझकर एक भी गुनाह नहीं किया है ऐसे हैं आजकल के लोग। बहुत ही अच्छे लोग हैं, लेकिन सिर्फ समझ की कमी पड़ गई है! और पहले तो जान-बूझकर गुनाह करते थे। ‘मैं जानता हूँ, बूझता हूँ कि तू महावीर है, तू पूरे ब्रह्मांड का नाथ है, वह भी मैं जानता हूँ, लेकिन तुझसे जो हो सके वह कर लेना।' इस तरह जान-बूझकर करनेवाले लोग भी थे। लेकिन वे बड़े लोग थे। क्योंकि इतना बड़ा गुनाह, इतने बड़े व्यक्ति के साथ करना, वह क्या छोटे बच्चे का काम है? नहीं। तो फिर यहाँ से सीधे ही जाता है सातवीं नर्क में ! वहाँ से देवलोक में जाता है और फिर यहाँ आकर वीतराग धर्म प्राप्त करके मोक्ष में चला जाता है! क्योंकि वीतरागों के साथ लड़ा था न ! भगवान ने कहा था कि लड़ो तो भी वीतराग के साथ लड़ना, लेकिन गालियाँ मत देना। तुझे यदि लड़ने की इच्छा हो तो वीतराग के साथ लड़ना, अच्छी तरह से लड़ना, मारामारी करना, तो उनके साथ
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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