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________________ १८२ आप्तवाणी-७ ...तब तो परभव का भी बिगड़े प्रश्नकर्ता : आज का टाइम ऐसा है कि इंसान खुद का भरण-पोषण भी पूरा नहीं कर सकता। वह पूरा करने के लिए उसे सही-गलत करना पड़े तो क्या ऐसा किया जा सकता है? दादाश्री : वह तो ऐसा है न, कि जैसे उधार लेकर दारू पीने जैसा है, उसके जैसा है यह व्यापार। कुछ अच्छा करो तो पुण्य मिलेगा जबकि इस गलत किए हुए से तो अभी टूट रहे हैं। अभी टूट रहे हैं, उसका क्या कारण है? पाप हैं, इसलिए आज कमी पड़ रही है, सब्ज़ी नहीं है, दूसरा कुछ नहीं है। फिर भी यदि अभी अच्छे विचार आ रहे हों, धर्म में-जिनालय में जाने के, उपाश्रय में जाने के, कुछ सेवा करने के, ऐसे विचार आ रहे हों तो वह पुण्यानुबंधी पाप है। आज पाप है, फिर भी वह पुण्य बाँध रहा है। लेकिन पाप हों और वह फिर से पाप ही बाँधे, ऐसा नहीं होना चाहिए। पाप हों, कमी हो, और इस तरह उल्टा करें तो फिर अपने पास बचा क्या? प्रश्नकर्ता : यह तो पूरा सर्कल है न, ब्लोक, बच्चों की पढ़ाई, जीने के लिए ये सब ज़रूरतें, तो कुछ गलत नहीं करें तो पूरा नहीं हो पाएगा। तो गलत करना चाहिए या नहीं? दादाश्री : पूरा पड़े या नहीं पड़े फिर भी आपको गलत तो करना ही नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : तो घर में पत्नी कहेगी कि, 'इनमें कमाने की काबिलियत नहीं है।' दादाश्री : तो आप कहना कि मुझ में काबिलियत नहीं है, तभी तो यह सब फजीता है। मुझ में काबिलियत नहीं है, आपको और कहीं शादी करनी हो तो कर लो। प्रश्नकर्ता : ऐसे बोलने से सामनेवाले को दु:ख हो जाए तो?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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