SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जी पाते हैं। एक सेकन्ड भी अधिक नहीं जी सकते, ऐसा एक्जेक्ट 'व्यवस्थित' है यह जगत् ! बेटा मर जाए तो उसके बाद रोता रहता है, भूलता नहीं। उससे क्या होगा? जो गए वे गए। राम तेरी माया। वे वापस नहीं मिलेंगे। यदि बेटे की याद आए तो उसके आत्मा का कल्याण हो ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए और उसके प्रतिक्रमण करने चाहिए। मृत्यु के बाद लौकिक व्यवहार करने के रिवाज़ हैं। लौकिक अर्थात् सुपरफ्लुअसली आमने-सामने करने का व्यवहार, जबकि लोग उसे सच मानते हैं और दुःखी होते हैं! हिन्दुस्तान में मरनेवाले को भय नहीं है कि मुझे कौन कंधा देगा! कुदरत का नियम है कि अपनी मृत्यु अपने हस्ताक्षर (अपनी सहमति) के बिना आ ही नहीं सकती! दु:ख के मारे अंतिम घड़ी में कभी भी हस्ताक्षर कर देता है! इतना स्वतंत्र है यह जगत्! । आत्महत्या से कहीं छुटकारा नहीं हो। अगले सात जन्म वैसे ही बीतेंगे! खुद परमात्मा है, उसे आत्महत्या की क्या ज़रूरत? लेकिन यह भान नहीं है, इसीलिए तो न! ९. निष्कलुषितता वही समाधि सच्चा धर्म तो उसे कहते हैं कि जिससे जीवन में क्लेश नहीं रहे। क्लेश ही क्लेश में मन-चित्त-अहंकार सब घायल हो जाते हैं। जिसका चित्त घायल हो चुका हो, वह बेचित्त घूमता रहता है। जो मन से घायल है, वह हमेशा अकुलाया हुआ ही घूमता रहता है! जैसे पूरी दुनिया खा नहीं जाएगी उसे! आहत अहंकारवाला व्यक्ति डिप्रेशन में हो, उसे कुछ कहा जा सकता है क्या? क्लेश मात्र नासमझी से उत्पन्न होते हैं! मन को पहले खुद बिगाड़ता है और बाद में काबू में करने जाए तो किस तरह हो पाएगा? 20
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy