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________________ फ्रैक्चर हो, तभी से आदि जुड़ने की! (१०) १६३ अतः यह जगत्, यह कुदरत एक मिनट के लिए भी न्याय से बाहर नहीं गई है। इसलिए कुछ भी हुआ कि हम तो तुरंत ही समझ जाते हैं कि यह हुआ वह न्यायस्वरूप है, इसलिए किसी पर आरोप लगाने जैसा है ही नहीं। धक्का लगानेवाले को देखा हो, फिर भी आरोप लगाने जैसा नहीं है। मारनेवाला तो बेचारा निमित्त है, उसमें कुदरत न्याय ही कर रही है। जब मेरा पैर टूटा तब मैंने देखा कि न तो चक्कर आया, न ही मुझे कुछ हुआ, तब फिर यह गिराया किसने? तो ऐसे देखा तब तो दिखा कि ओहोहो! समझ गया, यह तो हिसाब चुकाया है। कोई हिसाब किसी को छोड़ता नहीं है न! प्रश्नकर्ता : किसी से धक्का लग गया और उसे पूर्व का हिसाब होगा ऐसा कहे, तो वह एक प्रकार का दिलासा नहीं है? दादाश्री : नहीं, वह हकीकत में है। फिर भी लोग इसका लाभ दिलासे के रूप में लेते हैं। प्रश्नकर्ता : तो यह चीज़ हकीकत है? दादाश्री : हाँ, हकीकत में है! आपको मैं सादी भाषा में समझाता हूँ। जैसे आप किसी को धौल मारो, वैसे ही मैंने भी मारा है। सिर्फ इतना ही कि आप ठोकते ही रहते हो, जबकि मैंने मेरी तरह से हल्के से लगाया था। पूर्वभव में जो धौल मारी थीं वे हल्की मारी थीं, इसलिए हमें उस धौल का फल मिलता ज़रूर है, लेकिन वह हल्का होता है इसलिए वह सरलता से ठीक हो जाता है। उसे ठीक होने के लिए उच्च निमित्त मिल जाते हैं, और उलझन में डालनेवाले निमित्त नहीं मिलते। अतः जो जवाब पर से रकम ढूँढ निकाले, उसकी तो बात ही अलग न! देहोपाधि, फिर भी अंतःकरण की समता हमारा मन अनंत जन्मों से गढ़ा हुआ ही है। बाहर चाहे
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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