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________________ निष्क्लुशितता, ही समाधि है (९) १५९ इतनी सारी शक्तियाँ हैं। लेकिन इनसे तो, विचार तो क्या, लेकिन मेहनत करके करने जाएँ तब भी बाहर नहीं हो पाता। तब बोलो, मनुष्यों ने कितना दिवाला निकाल दिया है! अरे! क्लेश करना, वही सुख मान्यता? इन बंगलों में भी सुख नहीं मिला! इतने बड़े-बड़े बंगले!! देखो, बंगलों में उजाला कितना, लाल-हरे उजाले हैं। स्टेनलेस स्टील की थालियाँ कितनी हैं, लेकिन सुख नहीं मिला। पूरे दिन धमाचौकड़ी, धमाचौकड़ी...! ये कौएँ, चिड़ियाँ सभी घोंसलों में जाकर, मिलकर बैठते हैं, और ये मनुष्य ही हैं जो कभी भी मिल-जुलकर नहीं बैठते! अभी भी टेबल पर लड़ रहे होंगे, क्योंकि यह जाति पहले से ही सीधी नहीं है। सत्युग में भी सीधी नहीं थी, तो कलियुग में, अभी दूषमकाल में कहाँ से सीधी होगी? यह जाति ही अहंकारी है न! ये गाय-भैंस सभी 'रेग्युलर' हैं, उन्हें कुछ भी परेशानी नहीं होती। क्योंकि वे सभी आश्रित हैं। सिर्फ मनुष्य ही निराश्रित है। इसलिए ये सभी मनुष्य चिंता करते हैं। बाकी वर्ल्ड में दूसरे सभी जानवर या कोई देवलोकवासी चिंता नहीं करते, सिर्फ ये मनुष्य ही चिंता करते हैं। इतने अच्छे बंगले में रहते हैं फिर भी बेहद चिंता। अब खाते समय भी दुकान याद आती रहती है कि, 'दुकान की खिड़की खुली रह गई, उससे पैसा वसूलना रह गया!' यहाँ पर खाते-खाते चिंता करता रहता है कि जैसे अभी ही नहीं पहुँच जानेवाला हो!' अरे, रख न एक ओर! खा तो ले चुपचाप!! लेकिन सीधी तरह से खाना भी नहीं खाता। खिड़की खुली रह गई इसलिए अंदर चिढ़ा हुआ रहता है। इसलिए फिर बहाना निकालकर पत्नी के साथ झगड़ा शुरू कर देता है। अरे, तू चिढ़ा हुआ है किसी और पर, और पत्नी पर क्यों गुस्सा निकाल रहा है? इसलिए अपने यहाँ कवि गाते हैं कि 'कमज़ोर पति पत्नी के सामने बहादुर।' और कहाँ बहादुर बनेगा? बाहर बहादुर बनने जाए तो कोई मारेगा! इसलिए घर पर बहादुर!
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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