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________________ १५६ आप्तवाणी-७ अरे, उसे पूछो तो सही! जो हाथ में आया उसे पेट में डाल दिया। ऐसा तो होता होगा? एक व्यक्ति तो सेर भर आईस्क्रीम खा गया था। अरे भीतर पूछ तो सही। भीतर पूछना नहीं चाहिए कि, 'भाई, आप कैसे पचाओगे? पचाना हो तो भीतर डालूँ।' ये तो पूछते-करते नहीं हैं न! अब क्योंकि वह आज नहीं मरा, इसलिए लोग क्या समझते हैं कि, 'कोई हर्ज नहीं है। देखो न, पच गया न!' अरे, अंदर रोग घुस गया! वह रोग अंदर जमे बगैर रहेगा नहीं। आज मरा नहीं है, लेकिन सौ प्रतिशत रोग हो गया होता तो वह मर जाता। कुछ प्रतिशत कम रह गए इसलिए भीतर रह गया। फिर ये केन्सर की गाँठे निकलती हैं न? ये केन्सर की सारी बीमारी है न? वह इसी वजह से है। पूछे-करे बिना अंदर रोज़ डालता रहता है, डालता रहता है! जैसे कि यह कोई कारखाना न हो! मैं अगास से बोरसद जा रहा था, तो मैं एक घोड़ागाड़ी में बैठा। तीन लोग बैठे थे और चौथा मैं बैठ गया। मैंने घोडागाड़ीवाले से कहा, 'अब चार पैसेन्जर हो गए, अब तू गाड़ी चला!' उसने कहा, 'हा चाचा, चलाता हूँ।' बीच रास्ते में दो पैसेन्जरों ने ऐसे-ऐसे हाथ दिखाए, तो उसने तो गाड़ी खड़ी रख दी। दूसरे दो जनों को बिठाया। तब भी मैं कुछ नहीं बोला। थोड़ी दूर गए तो दूसरे दो लोग ऐसे-ऐसे हाथ दिखाने लगे। तब उसने गाड़ी खड़ी रख दी और पैसेन्जर को 'बैठना हो तो बैठो,' ऐसा कहा। अरे, घोड़े से पूछ तो सही कि तू खींच सकेगा? उसे पूछताकरता नहीं और पैसेन्जर को बिठाता ही रहता है। तू तो कैसा आदमी है? तब वह कहता है कि 'चाचा, घोड़े को अच्छी तरह खिलाऊँगा!' लेकिन बेचारे घोड़े से पूछता नहीं है और खींच-खींचकर घोड़े का दम निकल जाता है। उसी तरह ये लोग भी पूछे-करे बगैर भीतर खाना डाल देते हैं। ये तो कुछ पूछते नहीं और अंधाधुंध डालते रहते हैं। घोड़े को पूछना नहीं चाहिए कि, 'दो लोग ज्यादा
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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