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________________ निष्क्लुशितता, ही समाधि है (९) १५१ नहीं आता, तब तक वह धर्म में क्या समझेगा? पड़ोसी के साथ झगड़ा होने पर निकाल करना नहीं आए, तो वह किस काम का? झगड़े का निकाल करना तो आना चाहिए न? इतने बड़े-बड़े जज होते हैं, वे सात साल की सज़ा कर देते हैं। बाद में वे जज मुझे मिले थे। घर पर उनका पत्नी के साथ कुछ झगड़ा हो जाए तो वह केस अभी तक पेन्डिंग ही होता है। मैंने कहा कि, 'इस केस का पहले हल लाओ न! उस सरकारी केस का तो हर्ज नहीं है।' लेकिन इसमें किस तरह हल लाए? उसे समझ ही नहीं है न! पत्नी के साथ झगड़ा हो तो किस तरह हल लाना, उसकी समझ नहीं है न! मनुष्य समझता नहीं है कि इसका निकाल किस तरह करना है? तब टाइम उसका निकाल कर देता है। वर्ना खुद अपने आप, अभी के अभी, तुरंत ही एडजस्ट कर लेना चाहिए, वैसी समझ तो इन लोगों में नहीं है। प्रश्नकर्ता : बात को संभालना भी नहीं आता। दादाश्री : नहीं, लेकिन जहाँ पता ही नहीं चलता, वहाँ पर संभालेगा किस तरह? फिर टाइम उसका निकाल कर देता है। आखिर में टाइम तो हर एक चीज़ को खत्म कर देता है। समझदारी तो ऐसी होनी चाहिए न, कि यह गड़बड़ हो गई है तो उसका हल क्या लाएँ? ऐसा क्यों होना चाहिए? ये सभी जानवर संसार चला रहे हैं। क्या उनके पत्नी-बच्चे नहीं हैं? उनकी भी पत्नी है, बच्चे हैं, सभी हैं। अंडों को इतनी अच्छी तरह सेते हैं। अंडे देने से पहले घोंसला तैयार कर लेते हैं। क्या उनमें यह समझ नहीं है? और ये समझ के बोरे! अक़्ल के बोरे!! जब इन्हें अंडे देने होते हैं तब अस्पताल ढूँढते रहते हैं। अरे, घोंसला बना न! लेकिन ये अक़्ल के बोरे अस्पताल ढूँढते हैं और जानवर बेचारे अंडे रखने से पहले जान जाते हैं कि हमें अंडे देने हैं, इसलिए हमें घोंसला बनाना चाहिए। अंडे में से बच्चे होते हैं, फिर घोंसला तोड़ दें तो उन्हें हर्ज नहीं है, लेकिन उसे अंडे का तुरंत
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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