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________________ १४४ आप्तवाणी-७ आना। ऐसे लोग होते हैं न, जोखिमवाले लोग, उनसे कह रखा था। वे फिर मेरे पास आते थे और उन्हें समझा देता था। दूसरे दिन से आत्महत्या के विचार बंद हो जाते थे। १९५१ के बाद सभी को खबर दे दी कि जिस किसी को आत्महत्या करनी हो तो मुझसे मिलकर जाए और फिर करे। कोई आए कि मुझे आत्महत्या करनी है, तो उसे मैं समझा देता हूँ, आसपास के 'कॉज़ेज़,' 'सर्कल' आत्महत्या करने जैसा है या नहीं, सबकुछ उसे समझा देता हूँ और उसे वापस मोड़ लेता हूँ। यह तो बिना बात के। किसलिए आत्महत्या करनी है? आत्महत्या क्यों करनी है? तू खुद ही भगवान है। बिना बात तुझे आत्महत्या करने की ज़रूरत ही क्या है? लेकिन देखो न किसीने ऐसा कहा ही नहीं न! यह, जैसा मैं कह रहा हूँ, वैसा किसीने उसे कहा ही नहीं, लेकिन वास्तव में हकीकत ऐसी ही है न! प्रश्नकर्ता : कोई व्यक्ति आत्महत्या करे तो उसकी क्या गति होती है? भूतप्रेत बनता है? दादाश्री : आत्महत्या करने से तो प्रेत बनते हैं और प्रेत बनकर तो भटकना पड़ेगा। आत्महत्या करके बल्कि परेशानियाँ मोल लेता है। एक बार आत्महत्या करे तो उसके बाद कितने ही जन्मों तक उसके प्रतिस्पंदन आते रहते हैं! और ये जो आत्महत्या करते हैं न वे कोई नये लोग नहीं हैं, पिछले जन्म में आत्महत्या की हुई होती है उसके प्रतिस्पंदन के कारण करते हैं। आज आत्महत्या करते हैं, वह तो पहले की हुई आत्महत्या के कर्म का फल आता है। इसलिए खुद अपने आप ही आत्महत्या करता है। ऐसे प्रतिस्पंदन डले हुए होते हैं कि वह वैसा ही करता हुआ आता है। इसलिए खुद अपने आप ही आत्महत्या करता है और आत्महत्या के बाद अवगतिवाला जीव भी बन सकता है। अवगतिवाला जीव अर्थात् बिना देह के भटकता है। भूत बनना आसान नहीं है। भूत तो देवगति का अवतार है, वह आसान चीज़ नहीं है। भूत तो,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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