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________________ १३८ आप्तवाणी-७ हैं ! लेकिन जगत् का नियम ऐसा है कि आश्वासन देनेवाला व्यक्ति यदि खुद ही दुःखी हो, तो क्या आश्वासन देगा? वह तो वही देगा जो उसके पास है। इसलिए आजकल लोग दु:खी हैं न! अतः हमें सामनेवाले से ऐसा कहना चाहिए कि कोई व्यक्ति सुखी हो, अंतर के सुखवाला हो तो यहाँ पधारना, नहीं तो यहाँ पर मत पधारना और घर बैठे आश्वासन पत्र लिख देना। बेकार ही इन भूतों का यहाँ पर क्या करना है? भूत तो आकर बल्कि बेचारे को रुलाते हैं। अपने वहाँ पर ‘काण काढ़ो (किसी मृत्यु पर रोना-धोना करना), लौकिक करो' कहते हैं। ‘काण करो, मोंकाण करो।' वह किसलिए? कि ऐसा करके सबकुछ ठंडा कर दो। ये रो रहे हैं, तो उनकी सारी भावनाएँ निकल जाने दो, कहेंगे। आँसू नहीं निकलेंगे तो इंसान पागल हो जाएगा, इसलिए रोने देना पड़ता है। रोने में भी ओब्स्ट्रक्ट नहीं करना चाहिए और हँसने में भी ओब्स्ट्रक्ट नहीं करना चाहिए, नहीं तो इंसान पागल हो जाएगा। अपने यहाँ पर जो होता है वह ठीक ही होता है, फिर भी अब अपने यहाँ चिल्लाकर रोना-धोना वगैरह सब बंद हो गया है। लोग समझ गए कि इन बातों में कोई सार नहीं है। और मेमसाहब भी समझ गईं कि, 'छोड़ो न, जो गए वे थोड़े ही वापस आएँगे? लेकिन बैंक में तीस हज़ार रखकर गए हैं न!' यानी कि ये सब स्वार्थ के संबंध हैं। इनमें कुछ ही जगहों पर अंदर अच्छी भावनाएँ होंगी, लेकिन बहुत कम जगह पर। मूल संस्कार बहुत कम जगह पर बचे होंगे; बाकी तो सबकुछ स्वार्थ में, मतलब और मतलब में ही घुस गया है। मृत्यु निश्चित है फिर भी... प्रश्नकर्ता : घर में कोई मर जाए तो उसके बाद सिर मुंडवाते हैं। उसका कोई कारण होगा न? दादाश्री : गाँववालों को कैसे पता चलेगा कि इनके पिता
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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