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________________ १३२ आप्तवाणी-७ दादाश्री : हाँ, भुलाया जा सके ऐसा नहीं है। लेकिन आप नहीं भूलोगे तो आपको उसका दु:ख रहेगा और उसे वहाँ पर दु:ख होगा। ऐसा अपने मन में उसके लिए दु:ख मनाना, वह एक बाप के तौर पर आपके लिए काम का नहीं है। प्रश्नकर्ता : उसे किस तरह दु:ख होगा? दादाश्री : आप यहाँ पर दुःख मनाओगे तो उसका असर वहाँ पहुँचे बगैर रहेगा ही नहीं। इस जगत् में तो सबकुछ फोन की तरह है, टेलीविज़न जैसा है यह जगत् और हम यहाँ पर उपाधि करें तो वह वापस आ जाएगा क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : किसी भी तरह से नहीं आएगा? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : दुःखी रहें तो वह उसे पहुँचता है और उसके नाम पर हम धर्म भक्ति करें तो वह भी उसे पहुँचती है और उसे शांति होती है। उसे शांति पहुँचाने की बात आपको कैसी लगती है? और उसे शांति पहँचाना आपका फ़र्ज़ है न? इसलिए ऐसा कुछ करो न कि उसे अच्छा लगे। एक दिन स्कूल के बच्चों को ज़रा पेड़े खिला दो, ऐसा कुछ करो। प्रश्नकर्ता : वह सब किया! दादाश्री : हाँ, लेकिन ऐसा बार-बार करो। जब भी थोड़ी सुविधा हो, तब पाँच-पचास का ऐसा कुछ काम करो ताकि उसे पहुँचे। प्रश्नकर्ता : इन भाईसाहब को बेटे के मर जाने का जो दुःख हो रहा है न, लेकिन मुझे खुद को ऐसा अनुभव हुआ है कि माँ-बाप के गुज़र जाने के बाद मुझे वे कभी भी याद ही उसे शांति होती है। शांति पहुँचाना आपका मन स्कूल के
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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