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________________ सावधान जीव, अंतिम पलों में (८) १२५ भी रखकर नहीं गए और दो लाख रुपये रखकर गए हों तो कुछ नहीं बोलती। दादाश्री : हाँ, ऐसा है। ये तो नहीं रख गया इसलिए रोते हैं कि, 'मरता गया और मारता गया।' अंदर-अंदर ऐसा भी बोलते हैं! 'कुछ भी छोड़कर नहीं गया और हमें मारता गया!' अब उसने नहीं रखा, उसमें उसकी पत्नी का नसीब खराब था इसलिए नहीं रखा, लेकिन मृत व्यक्ति के लिए गालियाँ खाना लिखा था तो इतनी-इतनी सुनाते हैं! बड़ी-बड़ी गालियाँ! फिर वापस लोग भी आकर पूछते हैं कि, 'आपके पति कुछ रखकर नहीं गए?' तब वापस ऐसा कहती है कि, 'नहीं-नहीं, सबकुछ रखकर गए हैं। ऐसे तो खाने-पीने का सभी कुछ है।' अब सब के सामने बाहर ऐसा बोलती है और मन में अलग बोलती है! क्या हकीकत है इसके पीछे? अब लोग जब स्मशान में जाते हैं तो वापस नहीं आते न? या वे सभी वापस आते हैं? यानी यह तो एक प्रकार का फज़ीता है! और नहीं रोए तो भी दुःख और रोए तो भी दुःख! बहुत रोए तब लोग कहते हैं कि, 'लोगों के वहाँ नहीं मर जाते कि आप इतना रो रहे हो? कैसे घनचक्कर हो?' और नहीं रोए तो कहेंगे कि, 'आप पत्थर जैसे हो, हृदय पत्थर जैसा है आपका!' यानी किस ओर चलें, वही मुश्किल! 'सबकुछ तरीके से होना चाहिए,' ऐसा कहेंगे। वहाँ पर स्मशान में जलाएँगे भी सही और पास के होटल में बैठे-बैठे चाय-नाश्ता भी करेंगे। इस तरह नाश्ता करते हैं न लोग? प्रश्नकर्ता : अरे, नाश्ता लेकर ही जाते हैं न! दादाश्री : ऐसा! क्या बात कर रहे हो? यानी यह जगत् तो सारा ऐसा है! ऐसे जगत् में किस तरह रास आए?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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