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________________ सावधान जीव, अंतिम पलों में (८) दादाश्री : ये सब पहुँच जाते हैं, वे किसके घर जाते होंगे ? प्रश्नकर्ता : कहाँ जाते होंगे, वह किसे खबर ? लेकिन शांति से जाना चाहिए । १२३ दादाश्री : ऐसा है, कि यहाँ मरते समय दुःख रहे तो वहाँ तो जन्म लेते ही एक घंटा भी दुःख रहित नहीं बीतेगा। वह मरते समय दु:खी था, उसके बाद मर गया यानी कि दुःख उसका चला नहीं गया, दुःख तो वह साथ में ले गया । दुःख तो देह का गया कि देह छूट गई, लेकिन उससे कहीं छुटकारा नहीं हो जाता, भटकते रहना पड़ता है। अरे! मौत ही हो रही है -काल लोग तो शोर मचाते हैं । अरे, कर्म बदल रहे हैं, तू क्यों शोर मचा रहा है? बदलेगा कौन? कर्म बदलेंगे । द्रव्य - क्षेत्र-व भाव सबकुछ बदलते ही रहते हैं, उसमें खुद शोर मचाता हैं कि, 'मेरा यह था और मेरा यह चला गया, मेरा यह रह गया, ' बिना बात के शोर मचाता है ! यह जगत् निरंतर बदलता रहता है। इस शरीर में, बाहर सब ओर, व्यापार में और दूसरी सभी जगहों पर निरंतर बदलाव होता ही रहेगा। यह शरीर भी प्रतिक्षण मर रहा है, लेकिन लोगों को क्या, क्या कुछ पता हैं ? लेकिन लोग तो, जब लकड़ी के दो टुकड़े हो जाएँ और नीचे गिर जाएँ, तब कहते हैं कि, 'कट गया ।' अरे, यह कट ही रहा था। यह आरी चल ही रही थी । आरी लगाई तभी से हम नहीं कहते कि यह लकड़ी दो टुकड़ों में कट रही है? उसी प्रकार जन्म से यह आरी चल ही रही है। जन्म से लेकर जब मृत्यु होती है, तब दो टुकड़े अलग हो जाते हैं। गर्भ में आरी नहीं चलती, लेकिन जन्म लेते ही आरी चलनी शुरू हो जाती है। फिर डॉक्टर कहेंगे, ' भाई चले गए हैं।' अतः तब हमें ऐसा कहना चाहिए कि ‘दो टुकड़े अलग हो गए।' जब तक वे टुकड़े अलग
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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