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________________ ११६ आप्तवाणी-७ है। और फिर हिसाब लगाता है, 'कितने लाया था, उसके बाद कितने फूटे, आज कितने फूटे!' अब इसका रिफन्ड क्या तुरंत ही मिल जाएगा उसे? क्यों चिंताएँ की, अजंपा किया तो उसका फल नहीं मिलेगा? प्याले फूट जाने के बाद आप चिंता करते हो तो, वह पुरुषार्थ किया, तो क्या उसका फल नहीं मिलेगा? उसका फल मिलेगा, जानवर गति में जाने को मिलेगा , यानी एक तो प्याले फोड़े और जानवर गति में जाने की तैयारी की। एक नुकसान में से दो नुकसान उठाता है। इस दुनिया में एक नुकसान में से दो नुकसान कौन नहीं उठाता होगा? प्रश्नकर्ता : समझ नहीं हो तो एक नुकसान में से दो नुकसान उठाएगा ही न! दादाश्री : हाँ, यानी प्याले भी गए और चिंता की, वह पुरुषार्थ भी बेकार गया! प्याले फूटे, फिर भी पुण्य बाँधा! कोई कहे कि, 'हमें ज्ञान नहीं मिला, समकित नहीं हुआ तो मैं क्या करूँ? मुझे दूसरा नुकसान नहीं उठाना है!' तो मैं उसे कह दूँगा कि, “एक मंत्र सीख जाओ, कि जब प्याले फूट जाएँ तब बोलना कि, 'भला हुआ छूटा जंजाल। अब नये प्याले लाऊँगा।" तो उससे पुण्य बंधेगा, क्योंकि चिंता करने की जगह पर उसने आनंद किया, इसलिए पुण्य बंधेगा। इतना ज़रा आ जाए न, तो भी बहुत हो गया! हमें बचपन से ऐसी समझ थी, कभी चिंता की ही नहीं, कुछ हो जाए तब उस घड़ी ऐसा कुछ अंदर आ ही जाता था। ऐसे सिखाने से नहीं आता था, लेकिन तुरंत ही हाज़िर जवाब सब आ ही जाता था। बात समझने से, समाधि बरते यानी उपाधि में भी समाधि रहे, तब कहा जाएगा कि 'ज्ञानीपुरुष' की बात समझ गया। जब उपाधि नहीं हो, तब तो
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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