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________________ कढ़ापा-अजंपा (७) १०५ लोग जान जाते हैं और अजंपा तो अंदर होता है। कुछ सेठ तो इसलिए कढ़ापा नहीं करते कि इज़्ज़त नहीं जाए, लेकिन अंदर अजंपा कपटी और छोटा है इसलिए अगले जन्म के लिए क्रमबद्ध हिसाब बाँध देता है, यानी ये हस्ताक्षर करवा देते हैं सब । जिसे कढ़ापा होता है उसे भीतर अजंपा होता ही है। लेकिन यदि सिर्फ अजंपा ही हो तो वह बहुत अधिक जोखिमी होता है। लेकिन जब कढ़ापा और अजंपा दोनों साथ में हों, तब कढ़ापा अधिक खा जाता है, इसलिए अजंपा को बहुत कम हिस्सा मिलता है। लेकिन ये सेठ कढ़ापा नहीं करते, सिर्फ अजंपा ही करते रहते हैं। सेठ समझते हैं कि ये सब लोग मेरी कमज़ोरी जान जाएँगे । इसलिए सेठलोग बाहरी तौर पर कढ़ापा नहीं करते, अंदर ही अंदर अजंपा करते रहते हैं कि 'ये प्याले फोड़ डाले। अभी ये सब बैठे हैं, ये चले जाएँगे तब नौकर को दो तमाचे मार दूँगा । इसे तो अब निकाल देना है।' अंदर ऐसा ही करता रहता है। यानी जिसका कढ़ापा–अजंपा चला जाए, उसे तो भगवान ही कहेंगे । अब किसलिए इतना बड़ा पद कहा होगा ? क्योंकि कोई भी इंसान कढ़ापा–अजंपा रहित नहीं होता। इसलिए कढ़ापा - अजंपा, बस इतना ही शब्द जिसमें से निकल गया, वह भगवान कहलाएगा। वह भगवान अपना थर्मामीटर ! कढ़ापा - अजंपा का आधार प्रश्नकर्ता : मानो कि कढ़ापा - अजंपा चला जाए, फिर वापस आता है क्या? दादाश्री : नहीं आता। आपको लाना है? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : लोगों को कढ़ापा - अजंपा करना अच्छा लगता होगा? मन में समझते ज़रूर हैं कि, 'क्या करें अब ? उस बेचारे नौकर से फूट गए। मुझे कढ़ापा - अजंपा हुआ, यह सब गलत हो रहा
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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