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________________ भय में भी निर्भयता (६) ८७ भय! चेहरे ऐसे दिखते हैं जैसे कि अरंडी का तेल पी लिया हो। 'इन्कमटैक्स की चिट्ठी है' इस प्रकार इन्कमटैक्सवाले व्यक्ति को देखते ही घबराता है कि 'अब यह कहाँ से आया?' वह ऐसा समझता है कि अब इन्कमटैक्सवाला आया है, तो कुछ न कुछ लफडा लाया होगा! लेकिन जब पत्र खोले तब अंदर रिफन्ड आया होता है! बेकार ही ऐसे कितने आर्तध्यान और रौद्रध्यान करता है! और फिर खुद ही बँधता है! 'व्यवस्थित' में जो होगा वह आएगा, लेकिन उसमें ध्यान क्यों बिगाड़ता है! अब, जो वह पत्र लेकर आता है, वह भी वीतराग है। यह पोस्टमेन जो पत्र लेकर आता है, वह विवाह का निमंत्रण हो तो भी दे जाता है, मृत्यु का पत्र हो तो भी दे जाता है, वीतराग है बेचारा! वह तो नौकरी कर रहा है। उसे क्या लेना-देना? लेकिन यह उसे भी गालियाँ देता है। सबकुछ खुद की ही ज़िम्मेदारी पर करता है न! लेकिन इतना अधिक डर किसलिए? मुझे खुद को ही ऐसा लगता था कि यह बिदके हुए घोड़े जैसा क्यों लग रहा है ! किसी के पास कोई जायदाद नहीं, लेकिन फिर भी बिदके हुए घोड़े जैसी स्थिति कि 'ऐसा हो जाएगा और वैसा हो जाएगा,' इन्कमटैक्सवाला आएगा और फलाना आएगा। वह क्या करेगा आकर? क्यों डरते हो ऐसे? यह दीवार गिर जाएगी तो क्या होगा? यदि गिरनेवाली है और उँगली इतनी कुचली जानेवाली होगी तो कुचली जाएगी, पूरा हाथ कुचला जाना होगा तो उतना कुचला जाएगा। हमें जानना है कि 'क्या कुचल गया और कितना कुचल गया!' और क्या करना है? इतना कुचल जाएगा तो उतना हम जानेंगे। जितना हिसाब होगा उतना ही यह दीवार कुचलेगी, नहीं तो दीवार के बस में नहीं है कि हमें छू सके! यह गिरेगी, फलाना गिरेगा, यह स्लेब गिरेगा, कुछ भी नहीं गिरा है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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