SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भय में भी निर्भयता (६) ८५ गेस्ट हो, लेकिन आप गेस्ट बनकर क्या करते हो? कि आपके गेस्टरूम में बैठे नहीं रहते, लेकिन रसोईघर में जाकर कढ़ी हिलाने जाते हो। क्या गेस्ट को रसोई में जाना चाहिए? आप नहीं, पूरी दुनिया ऐसा ही करती है। गेस्ट बनकर गेस्ट होने का भान ही नहीं है। यदि आप गेस्ट की तरह हो तो आपको भय नहीं, कुछ भी नहीं। लेकिन गेस्ट बनना नहीं आया। जहाँ आप बैठे हो, वहाँ पर हवा-पानी मिल जाते हैं या नहीं मिलते? और अभी तक खानेपीने का मिला है या नहीं मिला? कपड़े-लत्ते नहीं मिले होंगे? सबकुछ मिला है। लेकिन सिर्फ भय से, क्रोध-मान-माया-लोभ से अगला जन्म बाँधा है, नहीं तो इस जगत् में भय जैसी चीज़ है ही नहीं। इस वर्ल्ड में भी भय जैसी चीज़ होती ही नहीं। क्योंकि कुदरत के गेस्ट को किसका भय? एक राजा का गेस्ट हो तो उसे भय नहीं रहता, तो आप सब तो नेचर के गेस्ट हो, तो आपको किसका भय लगता है? आपकी ज़रूरत की सभी चीजें नेचर आपको सप्लाई करती हैं। कितनी सुंदर दशा में रखती है, फिर भी कितना भय लगता है! सबकुछ मिला है, नहीं ता सी चीज़ होती गेस्ट हो यह मन झूठ-मूठ में ही डराता रहता है। अरे, अपनी मृत्यु भी दिखाता है न, कि 'मर गया तो क्या होगा?' उसे कहना कि, 'ऐसे डरा क्यों रहा है? लोगों की तेरही नहीं की? मैं तेरी तेरही करूँगा,' तब वह चुप हो जाएगा। इन लोगों ने तो ऐसा देखा ही नहीं है और इसलिए जब देखते हैं तो डर जाते हैं! घबराने की बजाय, स्वच्छ रहो 'लोगों को कैसा लगेगा?' ऐसा भय लगता रहता है। ऐसे भय को रूम किराये पर देने के बजाय हमें खाली रखना चाहिए। उस रूम को साफ करते रहना अच्छा। भय को तो किराये पर देना ही नहीं चाहिए। 'लोगों को कैसा लगेगा?' इस भय को कहाँ
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy