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________________ ८० आप्तवाणी-७ जाने के लिए बीस हज़ार रुपये की ज़रूरत थी, तो सात साल तक अपनी पत्नी से कहता रहता है कि 'अभी सुविधा नहीं है, सुविधा नहीं है।' आपकी समझ में आया न? खुद अपने आप से भी कपट है, यानी कहाँ पर यह कपट नहीं करता? इसलिए कबीर साहब ने सच कह दिया कि, "मैं जानूँ हरि दूर है, हरि हृदय मांही, आडी त्राटी कपट की, तासे दिसत नाहीं।" भीतर खुद ने कपट का परदा रखा हुआ है। उसके बावजूद भी भगवान पास में दिखने लगे। वह परदा है फिर भी ज़रा जाली में से दिखने लगे तो मन में शर्म आने लगी कि भगवान देख लेंगे। इसलिए परदे पर डामर लगवाया, हर साल दो-दो बार डामर लगवाया। यह परदा जान-बूझकर खुद ने ही खड़ा किया है। इनके लिए क़ीमत किसकी? कल एक बूढ़े चाचा आए थे, वे मेरे पैरों में गिरकर खूब रोए! मैंने पूछा, 'क्या दुःख है आपको?' तब कहा, 'मेरे ज़ेवर चोरी हो गए, मिल ही नहीं रहे, अब वापस कब आएँगे?' तब मैंने उसे कहा, 'वे जेवर क्या आप साथ में ले जानेवाले थे?' तब कहा, 'नहीं, वे साथ में नहीं ले जा सकते, लेकिन मेरे ज़ेवर चोरी हो गए न, वे वापस कब मिलेंगे?' मैंने कहा, 'आपके चले जाने के बाद मिलेंगे!' ज़ेवर चोरी हो गए उसके लिए इतनी हाय, हाय, हाय! अरे, जो चला गया उसकी चिंता करनी ही नहीं होती। शायद कभी आगे की चिंता, भविष्य की चिंता करे, वह तो हम समझते हैं कि बुद्धिशाली इंसान को चिंता तो होगी ही, लेकिन गया उसकी भी चिंता? अपने देश में ऐसी चिंता होती है, घड़ीभर पहले जो हो चुका है उसकी क्या चिंता? जिसका उपाय नहीं है, उसकी क्या चिंता? कोई भी बुद्धिशाली समझ जाएगा कि अब उपाय नहीं रहा, इसलिए उसकी चिंता नहीं करनी है।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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