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________________ चिंता से मुक्ति (५) भी नहीं आता। दर्शन करना तो, 'ज्ञानीपुरुष' सिखाते हैं कि 'इस तरह दर्शन करना' तब जाकर काम होता है। इस चिंता में तो अग्नि जलती रहती है। शक्करकंदी देखी है? जिस तरह भट्ठी में रखने से शक्करकंद भुन जाते हैं, उसके जैसा होता है! इतनी अच्छी सब्जी-भाजी ले आता हैं, लाकर खाता है और चिंता करता है, अपने पैसों से कपड़े पहनकर चिंता करता है। बेहद चिंता है आपको तो। किसी दिन क्लेश-कलह हो जाती है न? प्रश्नकर्ता : भले ही कितने ही आनंद में बैठे हों, लेकिन कुछ ऐसा शब्द निकल जाता है और उससे क्लेश खड़ा हो जाता है दादाश्री : उस घड़ी दरवाज़ा बंद करके क्लेश करते हो प्रश्नकर्ता : कभी भी दरवाज़ा बंद करके क्लेश नहीं करते। दादाश्री : तो दरवाज़ा खुले रखकर करते हो? तब तो फिर सभी लोग जान जाएँगे! सही तो कब कहलाएगा कि महीने में एकाध दिन ज़रा क्लेश हो जाए, रोज़-रोज़ क्लेश नहीं हो। हमें पसंद नहीं हो फिर भी ऐसा होता है न? तो फिर वह कौन करता होगा? जो आपको पसंद नहीं हैं, वही शब्द निकल जाते हैं। सभी का कारण अज्ञानता है। अज्ञानता जाए तो शांति हो जाएगी। अज्ञानता निकालनी है आपको? चिंता जाए और क्लेश बंद हो जाए, ऐसा आपको करना है? चिंता करने के बजाय, धर्म में मोड़ो प्रश्नकर्ता : घर के जो मुख्य लोग हों, उन्हें जो चिंता रहती है, वह किस तरह दूर करनी चाहिए?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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