SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० आप्तवाणी-६ जब तक आत्मा अनुभव में नहीं आता, तब तक कुछ नहीं हो सकता। लोग कहते हैं कि 'चीनी मीठी है, चीनी मीठी है' तब हम पूछे कि 'कैसी मीठी है?' तब वे कहते हैं कि 'मैं नहीं जानता! वह तो मुँह में रखेंगे तब पता चलेगा।' वैसा ही आत्मा का है। ये सब आत्मा की बातें करते हैं, परंतु सब सिर्फ बातों में ही है। उसमें कुछ भी फलदायी नहीं है। कषाय जाते नहीं और अपने दिन सुधरते नहीं। अनंत जन्मों से ऐसे भटक रहे हैं। 'ज्ञानीपुरुष' के दर्शन नहीं किए, सत् सुना नहीं और सत् पर श्रद्धा बैठी नहीं। सत् को जानना तो चाहिए न एक बार? कषाय बहुत दुःखदायी हैं न? और वे जो सुख देते हैं वे कषाय, वे क्या है? प्रश्नकर्ता : वह तो आपने कहा तब पता चला कि वे महादुःखदायी हैं। नहीं तो अनुकूल में कषाय होते हैं, वह समझ में ही नहीं आता था। दादाश्री : 'ज्ञानीपुरुष' के बताए बिना मनुष्य को खुद की भूल का पता नहीं चलता, ऐसी अनंत भूलें हैं। यह एक ही भूल नहीं है। अनंत भूलों ने घेरा हुआ है। प्रश्नकर्ता : भूलें तो पग-पग पर होती हैं। दादाश्री : ये अनुकूल, वे कषाय कहलाते हैं, ऐसा आप अच्छी तरह समझ गए हो न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : ये जो निरंतर गारवरस (संसारी सुख की ठंडक में पड़े रहने की इच्छा) में रखता है, खूब ठंडक लगती है, खूब मज़ा आता है, ये ही कषाय हैं, जो भटकानेवाले हैं। कषायों का आधार प्रश्नकर्ता : ये कषाय किस आधार पर हैं?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy