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________________ ६८ आप्तवाणी-६ दादाश्री : हाँ, क्रोध-मान-माया-लोभ सभी का ऐसा ही है। एक 'डिस्चार्ज' भाव है और दूसरा 'चार्ज' भाव है। आपका नाम क्या है? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : आप 'चंदूभाई हो', वह निश्चित कर लिया है? प्रश्नकर्ता : सभी ने कहा है मुझसे। दादाश्री : यानी नामधारी तो मैं भी कबूल करता हूँ, परंतु वास्तव में 'आप' कौन हो? जब तक, 'मैं चंदूभाई हूँ', ऐसा आरोपित भाव है तब तक कर्म चार्ज होते ही रहेंगे। प्रश्नकर्ता : राग-द्वेष, वे कषायभाव हैं या कुछ और हैं? दादाश्री : वे कषाय के ही भाव हैं। वह दूसरा तत्व नहीं है। क्रोध और मान, वे द्वेष है और माया व लोभ, वे राग है। ये क्रोध-मान-मायालोभ, ये आत्मा के गुणधर्म नहीं है, उसी प्रकार पुद्गल के भी गुणधर्म नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो तीसरा कौन सा तत्व है? दादाश्री : आत्मा और पुद्गल की हाज़िरी से उत्पन्न होनेवाले गुण हैं। हाज़िरी नहीं होगी तो नहीं होंगे। प्रश्नकर्ता : कषाय में कष् + आय है, वह क्या है? दादाश्री : आत्मा को पीड़ित करें, वे सभी कषाय हैं। प्रश्नकर्ता : राग से पीड़ा नहीं होती, फिर भी राग को कषाय क्यों कहा है? दादाश्री : राग से पीड़ा नहीं होती, परंतु राग, वह कषाय का बीज है। उसमें से बड़ा वृक्ष उत्पन्न होता है! द्वेष वह कषाय की शुरूआत है और राग - वह बीज डाला, तभी से फिर उसका परिणाम आएगा। उसका परिणाम क्या आएगा? कषाय।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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