SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-६ 'आप चंदूभाई हो' और आपने मान लिया कि 'मैं चंदूभाई हूँ', वह अहंकार! प्रश्नकर्ता : परंतु उसे आघात लगे तब अच्छे-बुरे का कुछ भी भान नहीं रहता। दादाश्री : अहंकार की आँखे कभी भी होती ही नहीं, अंधा ही होता है। प्रश्नकर्ता : यानी बाकी सब से अहंकार बड़ा है न? दादाश्री : हाँ, वह सरदार है। उसकी सरदारी के नीचे ही तो यह सब चलता है! प्रश्नकर्ता : तो उस समय क्या एडजस्टमेन्ट लेना चाहिए? दादाश्री : क्या एडजस्टमेन्ट लेना है? 'आपको देखते ही रहना है कि कैसा अंधा है!' वह 'एडजस्टमेन्ट' लेना है। अहंकार कोई वस्तु नहीं है। 'हम' जो मानते हैं कि 'यह मैं हूँ' वह सारा ही अहंकार और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' उतना ही निअहंकार। 'मैं पटेल हूँ', 'मैं पचास वर्ष का हूँ', 'मैं कलेक्टर हूँ', 'मैं वकील हूँ'। जो-जो बोले, वह सारा अहंकार है। प्रश्नकर्ता : अच्छा करने के लिए जो प्रेरित करता है, वह भी अहंकार कहलाता है? दादाश्री : हाँ, वह भी अहंकार कहलाता है। गलत करने की प्रेरणा दे, वह भी अहंकार कहलाता है। वह अच्छे में से गलत कब करेगा, वह कहा नहीं जा सकता। क्योंकि अंधा है न? यदि आप जिसे दान दे रहे हों और वही मनुष्य कुछ ऐसा शब्द बोल गया, तो आप उसे मारने दौड़ोगे! क्योंकि वह अहंकार है। प्रश्नकर्ता : सैनिक ऐसा कहे कि 'मैं हिन्दुस्तान के लिए लड़ता हूँ', तो वह अहंकार है?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy