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________________ आप्तवाणी-६ 'व्यवस्थित' की संपूर्ण समझ से केवलज्ञान गाड़ी में से उतार दें तो समझना कि 'व्यवस्थित' है। फिर वापस बुलाएँ, तब भी 'व्यवस्थित' और फिर उतार दें, तब भी 'व्यवस्थित'। ऐसे सात बार उतार दें, तब भी 'व्यवस्थित'! सात बार चढ़ाएँ तब भी 'व्यवस्थित'। ऐसा जिसे बरतता है उसे केवलज्ञान हो जाएगा! हमने ऐसा 'व्यवस्थित' दिया है कि केवलज्ञान हो जाए, 'व्यवस्थित' यदि संपूर्ण, पूरापूरा समझ ले तो! 'व्यवस्थित' तो चौबीसों तीर्थंकरों के शास्त्रों का सार है। प्रश्नकर्ता : आपको पहले व्यवस्थित समझ में आया होगा, बाद में यह ज्ञान देने लगे न? दादाश्री : हाँ, बाद में ही दिया था न! 'व्यवस्थित' मेरे अनुभव में कितने ही जन्मों से आ चुका है और उसके बाद ही मैंने यह बाहर दिया। नहीं तो दे ही नहीं सकते न! इसमें तो जोखिमदारी आती है। वीतरागों का एक अक्षर भी बोलना और किसी को उपदेश देना, बड़ी जोखिमदारी है। आपको कितनी बार मोटर में से उतार दें तो 'व्यवस्थित' हाज़िर रहेगा? प्रश्नकर्ता : चार-पाँच बार, फिर कमान छटक जाएगी। दादाश्री : कमान छटक जाए तो वह पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) की छटकेगी। 'हमें' तो 'जानना' है कि यह पुद्गल की कमान छटकी है। हमें तो क्या कहना है कि, 'यह पुद्गल की कमान छटकी है, फिर भी मैं वापस आ गया और मोटर में बैठ गया।' यह कमान छटकी है, ऐसा 'हमें' 'जानना' चाहिए। यह 'व्यवस्थित' ऐसा सुंदर है! यदि कमान छटके और वापस आड़ा होकर (नाराज़ होना) चला जाए और फिर वापस नहीं आए तो वह गलत कहलाएगा। यह 'व्यवस्थित' समझ में आ गया, फिर कुछ भी दख़लंदाजी करने जैसा है ही नहीं। पुद्गल का जो होना हो सो हो, परंतु हमें आड़ा नहीं होना है। पुद्गल तो हमें आड़ा करने की ताक में लगा रहता है।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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