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________________ ५० आप्तवाणी-६ बिना चारा ही नहीं! आपका चाहे जितना खराब दोष हो, परंतु उसका आपको खूब हार्टिली पछतावा हो तो वह दोष फिर से नहीं होगा और फिर से हो जाए तो भी उसमें हर्ज नहीं है, परंतु पछतावा खूब करते रहना। प्रश्नकर्ता : यानी मनुष्य के सुधरने की संभावना है क्या? दादाश्री : हाँ, बहुत ही संभावना है, परंतु सुधारनेवाला होना चाहिए। उसमें 'M.D.' चाहिए, 'ER.C.S.' डॉक्टर नहीं चलेगा, घोटालेवाला नहीं चलेगा, उसके तो 'सुधारनेवाले' चाहिए। अब कुछ लोगों को ऐसा होता है कि खूब पछतावा किया, फिर भी वापस वैसा ही दोष हो जाता है, तो उसे ऐसा लगता है कि यह ऐसा क्यों हुआ-इतना अधिक पछतावा हुआ फिर भी? वास्तव में तो यदि हार्टिली पछतावा हो, तो उससे दोष अवश्य जाता ही है! दोषों का शुद्धिकरण खुद की भूलें दिखे, वह आत्मा है। खुद अपने आप के लिए निष्पक्षपाती हुआ, वह आत्मा है। आप आत्मा हो, शुद्ध उपयोग में रहो तो आपको कोई कर्म छुएगा ही नहीं। कुछ लोग मुझे कहते हैं कि आपका ज्ञान सच्चा है, परंतु आप गाड़ियों में घूमते हो, वह जीवहिंसा नहीं मानी जाएगी? तब मुझे कहना पड़ता है कि, 'हम शुद्ध उपयोगी हैं।' और शास्त्र कहते हैं कि, 'शुद्ध उपयोग ने समताधारी, ज्ञानध्यान मनोहारी रे, कर्म कलंक को दूर निवारी, जीव वरे शिवनारी रे।' खुद के दोष दिखने लगें, तभी से तरने का उपाय हाथ में आ गया। चंदूभाई में जो-जो दोष हैं, वे सभी 'हमें' दिखते हैं। यदि खुद के दोष नहीं दिखें तो, यह 'ज्ञान' किस काम का? इसलिए कृपालुदेव ने कहा था, 'हुं तो दोष अनंतनुं भाजन छु करुणाळ, दीठा नहीं निजदोष तो तरीए कोण उपाय?'
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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