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________________ आप्तवाणी-६ ४७ नहीं चाहिए, फिर भी तुम क्यों आती हो? तब वह कहेगी, 'आपकी यह शिकायत है, इसलिए आई हूँ।' तब हम कहें, 'लाओ तेरा निकाल कर दें।' जो याद आए, बैठे-बैठे उसका 'प्रतिक्रमण' करना है, और कुछ भी नहीं करना है। जिस रास्ते हम छूटे हैं, वही रास्ते आपको बता दिए हैं। अत्यंत आसान और सरल रास्ते हैं, नहीं तो इस संसार से छूटा ही नहीं जा सकता। यह तो भगवान महावीर छूटे, वर्ना नहीं छूट सकते। भगवान तो महा-वीर कहलाए! फिर भी उनके कितने ही उच्च और निम्न अवतार हुए थे। ज्ञानी के कहे अनुसार चलोगे, तो सबकुछ ठीक हो जाएगा। याद क्यों आती है? अभी भी किसी जगह पर चोंट (चित्त का चिपकना) है, वह भी 'रिलेटिव' चोंट कहलाती है, 'रियल' नहीं कहलाती। 'इस जगत् में कोई भी विनाशी चीज़ मुझे नहीं चाहिए।' ऐसा आपने नक्की किया है न? फिर भी क्यों याद आता है? इसलिए प्रतिक्रमण करो। प्रतिक्रमण करते-करते फिर से वापस याद आए, तब हमें समझना चाहिए कि अभी तक यह शिकायत बाकी है! इसलिए फिर से प्रतिक्रमण ही करना है। प्रश्नकर्ता : वह तो दादा, जब तक उनका बाकी रहे, तब तक प्रतिक्रमण होते ही रहते हैं। उसे बुलाना नहीं पड़ता। दादाश्री : हाँ, बुलाना नहीं पड़ता। हमने नक्की किया हो, तो वे अपने आप होते ही रहते हैं। प्रश्नकर्ता : उदय आते ही रहते हैं। दादाश्री : उदय तो आते ही रहेंगे। परंतु उदय यानी क्या? भीतर जो कर्म था, वह फल देने के लिए सम्मुख हुआ। फिर वह कड़वा हो या मीठा हो, जो आपका हिसाब हो वह ! कर्म का फल सम्मुख आते ही यदि हमें चेहरे पर उकताहट लगे, तो समझना कि भीतर दुःख देने आया है और यदि चेहरे पर आनंद दिखे तो समझना कि उदय सुख देने आया है। अर्थात् उदय आए तब हमें समझ जाना चाहिए कि "भाई आए हैं, इसका 'समभाव से निकाल कर देना है।"
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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